संविधान के अनुच्छेद 47 में जो नशीले पदार्थ के नियंत्रण के उपाय किए जाने के निर्देष थे उन पर किसी सरकार ( केंद्र और राज्य दोंनों ) ने ( सिवा नारे और होर्डिंग़ लिखने के ) कोई उपाय कारगर तरीके से नहीं किए . देखा देखी कम उमर के बच्चे भी इस ओर आकर्षित हो चले हैं , इससे और ज़्यादा चिंता की बात क्या होगी . इशारे से जब कोई कहता है कि खाते पीते घर के हैं तो पीने का अर्थ वही है जो आप और हम समझ सकते हैं !
अब फार्म हाउसों पर रेव पार्टी का चलन बढ चला है और इसमें नए युवा को फांसने में खासे पहल लोग करते हैं 1 अरे यार एक बार में कुछ नहीं होता 2 कौन देख रहा है ,सब पीते हैं 3 यह पेप्सी है , शराब नहीं ( अगर पी ली तो गया काम से , संपत्ति के बेचने के झांसे से हस्ताक्षर , , पी कर वाहन टकरा देना , अपराध जगत में नए सदस्य का जश्न ) सीधा है तो आत्म ग्लानि ,आदि ) आदतन इस नशे की लत का गुलाम होने का खतरा आदि . आज इस ओर सख्त होनेकी बहुतजरूरत है और जो पीडित हैं उनके स्वयं के संकल्प के बिना समस्या जल्दी हल नहीं होगी .
एक पीढी को इस तरह नष्ट होते देखना क्या गुड गवरनेन्स कही जाए ?
कैसे कहा जाए कि भविष्य संवरेगा जब आज की जमीनी हालत अंधरा रही हो ?
नशा सेवन अन्य दुष्प्रवृत्तियों को जन्म देताहै जो विपत्तियां तो अपने साथ लाती ही हैं .छोटे शहरों में युवकों के तलाक के बढते मामले इस की पुष्टि करते हैं . इस विघटन पर समाज और सरकार को सजग होना ही चाहिए
हाउस टैक्स
श्री गोविंद राव के अध्ययन के अनुसार संपत्ति कर या गृह कर शहरी आवासिकों पर जो करीब 30 % हैं पर स्थानीय निकायों द्वारा राज्य सरकार की ओर से लगाए जाते हैं . कर की मार का बोझ बहुत ज्यादा है जो कम होना चाहिए . यहां तक कि विभिन्न शहरों में कर की काफी विसंगतियां हैं जो दूर की जाएं.
आत्म रक्षा बनाम शस्त्र लाइसेंस
क्षेत्रपाल शर्मा |
आज भी टेलीफोन कनेक्सन की तरह शस्त्र लाइसेंस हैसियत की चीज बनकर रह गई है . विकसित कई देशों में यह शस्त्र खरीदने के लिए लाइसेंस की कोई जरूरत नहीं हैं . जब एक के पास है और दूसरे के पास नहीं तो असमान बर्ताव होगा ही जब कि अपराधी के पास ये रहते हैं . जब सब के पास शस्त्र होगा तो एक दूसरे से डर नहीं होगा . विशेषकर महिलाओं को शस्त्र देने के मामले में उदारता हो . अब महिलाओं के पास स्व रक्षा के लिए जो भी उपाय हैं कराटे , 100 नम्बर , हेल्प लाइन , मोबाइल पैपर स्प्रे आदि उनसे भी ज्यादा कारगर उपाय आने बाकी हैं .प्रस्ताव यह है कि अब शस्त्र उपलब्धता के मामले में कंपनी राज से हटकर , बदलते परिप्रेक्ष्य में नए सिरे से सोचा जाए
दवा के दाम
दवाओं के दाम , पैरा मेडिकल प्रशिक्षित स्टाफ की कमी और अनावश्यक लेब टेस्ट का बोझ बीमारों पर कम होना चाहिए .
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .