लिखने के बहाने

लिखने के बहाने

जी चाहता है खुले आसमान मे,
पंख फैलाये उडान भर लूँ!

लेखन

इस पावन धरा के हर कृृषक-
की किस्मत मे,
जीने की तमन्ना का एक नया पाठ लिख दूँ!
लहराती थी जिन आँखो मे,
हर फसल कि खुसहाली लिख दूँ!
मैं आज कविता लिखने के बहाने-
उस आँख के हर आँसु को लिख दूँ!!
चाहत तो शायद बड़ी है मेरे दिल मे,
अपनी इस छोटी कलम से जमीनदारो-
की लाट्ठी को हर लूँ,,
उनकी अन्धेरी गुहा सी आँखो से-
कारिंदो का भय मिटा दूँ!
देखो आज हर कोने मे, हर झोपडी-
मे फाँसी से लटका है किसान,
हर पार्टी के हर नामी कर्मनिष्ट-
मंञी कि लाट्ठी से मरा है किसान
अगर मिले जो खुदा कही तो-
उसे उसकी ये न्याय दिखा दूँ,
मैं आज कविता लिखने के बहाने-
उस आँख के हर आँसू को लिख दूँ!!

यह रचना गोपाल लाल कुमावत जी द्वारा लिखी गयी है . आप जिला नागोर, राजस्थान से हैं . आप अभी विद्यार्थी हैं .
संपर्क सूत्र – गोपाल लाल कुमावत,पता:- मु. गांधी ग्राम पो. घाटवा, त. नाँवा, जिला नागोर,राजस्थान, मोबाइल –  8769799395; 7877159501

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