चाय से रोटी खाने में

चाय से रोटी खाने में 

कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
सुबह का अंगड़ाइयां लेते उठना 
कितना अच्छा लगता था
दिन की शुरुआत होती थी चाय से रोटी खाने में 
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
बिना मुंह धोए खा पी लेना 
उठना बैठना रहता था बचपन में 

चाय से रोटी खाने में
चाय से रोटी खाने में 

कितने ही गंदे-मटमेले 
कभी स्वास्थ्य ना बिगड़ा रहने में 
आज सौ सफाई रखने पर भी
बीमार पड़ जाते हैं सिर्फ कहने में
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
घर में रोटी नहीं हो कभी 
तो पड़ोसी के मांग कर लाने में 
कभी झिझक नहीं की,
पड़ोसी के घर जाने में 
यही लगाव और अपनापन था जीवन में
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
रात की बची रोटी को 
चूल्हे की आग में गर्म कर
डुबो-डुबो कर खाना चाय में 
टॉस ब्रेड और फैन रहते,
सिर्फ बाजार में
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
 जब से खाने लगे 
टॉस ब्रेड और फैन चाय में 
आने लगा परिवर्तन हमारे जीवनकाल में
रही शर्म ना लाज चाल-ढाल में 
बदलती सी जा रही जीवनशैली 
दिखने और दिखावे में 
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
चाय बनते ही माँ-दीदी का बुलावा
कितना स्पूर्ति वाला होता था
सुनते ही दौड़ते चिल्लाते-हंसते 
देर नहीं करते घर आने में 
कितना रस था चाय से रोटी खाने में 
भर-भर प्याली चाय की सजाना 
ये मेरी है ,ये मेरी है जोर-जोर से चिल्लाना 
और इस चिल्लाहट में प्याली का लुढ़क जाना 
लुढ़की हुई प्याली को फिर देखना 
कितना रोते- बिलखते दोबारा चाय बनवाने में 
कितना रस था चाय से रोटी खाने में ।






– पवन कुमार मीणा 

असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी 

श्री भगवानदास तोदी पी०जी० महाविद्यालय

लक्ष्मणगढ़ (सीकर) राजस्थान 

संपर्क सूत्र:- 9528215201

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