वसंत
कर लिए पलाश माल,
स्वयंबरा वसंत है।
उजली सी धूप लिए,
भोर मग्न हो रही।
हरी दूब फुनगियों पर,
ओस सपन बो रही।
निकला मन सज धज के,
कामना अनंत है।
नूतन हैं पर्णवृंत,
कलियाँ हैं मनचली।
हरी हरी घास पर ,
तितलियाँ मटककली।
मनुहारों के मौसम में,
बिखरा वसंत है।
पिक भ्रमर गूँज करें ,
पुलकित है प्रणय मान ।
लोहित नभ गोधूलि भरा,
करता नव सांध्य गान।
मोहक तन पुलक गंध,
फैली अंतस अनंत।
-नवगीत
सुशील शर्मा