वास का नाश

   वास का नाश  

 धरती पर जीवन के विकास क्रम में जीवों, वनस्पतियों का विलुप्त होना कोई अनोखी बात नहीं है | धरती पर जब से जीवन अस्तित्व में आया तब से प्राकृतिक प्रक्रिया के अंतर्गत जीवों की कितनी ही प्रजातियाँ विलुप्त

होती  गईं  और समय समय पर नई प्रजातियों का विकास भी होता गया || यहाँ मुझे कवि हरिवंश राय बच्चन जी की लिखी पंक्तियाँ याद आ रही है |

           “नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर |
             नाश के दुःख से कभी,  दबता नहीं निर्माण का सुख ||”
अत: प्रजातियाँ विलुप्त होती गई और फिर से नए जीवों की उत्पति | यह प्रकृति का क्रम पता नहीं कितने सालों से अनवरत चलता  जा रहा है | प्रकृति का नियम है और इसमे बदलाव प्रकृति अपने अनुरूप करा लेती है क्योकि प्रकृति का शाश्वत नियम है “परिवर्तन”|
          लेकिन कुछ समय से मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है | वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए प्रकृति का बेजा दोहन कर रहा है |  इस वजह से आज धरती पर बहुत-से   प्राणियों की प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है | प्राणी ही नहीं कई वनस्पतियाँ भी विलुप्त होने के कगार पर है |  आज ऐसे प्राणियों और वनस्पतियों का जीवन खतरे में है जो हमारी धरती के लिए बहुत आवश्यक है | इन सबका जिम्मेदार कौन ? सीधी-सी बात बुद्धिमान प्राणी मनुष्य | 
        तीव्र गति से होते विकास, मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या, उसके रहने – खाने की सुविधा हेतु वनों की कटाई | यहाँ तक कि अपने लालच के लिए  कई प्राणियों की निर्मंम हत्या तक कर देना | 
       
जयश्री जाजू

 अब इस बुद्धिमान मनुष्य को देखिए अपने बचाव के लिए आराम से कह देता है कि यदि हम विकास कर रहे है तो यह कोई बुरी बात नहीं है इन जानवरों को बचाने के लिए हमने अभयारण्य बनाए है | लेकिन मैं आप सब से पूछती हूँ कि क्या सिर्फ इस छोटी कोशिश से हमारी जिम्मेदारी ख़त्म हो जाती है |  यदि यह कोशिश धरती के लिए बहुत है तो आज हम इतनी समस्याओं से क्यों गुजर रहे है ? आज हर दूसरा आदमी बदलते मौसम से परेशान  क्यों है, नई-नई बीमारियों से क्यों जूझ रहा है ? जवानी में ही बुढापे के लक्षण क्यों  दिखाई दे रहे है ?  कहीं इन सब के पीछे  प्रकृति का असीमित दोहन करना तो नहीं |

          अगर मनुष्य अभी भी नहीं जागेगा तो कहीं बहुत देर न हो जाय | अभी तो दयामई धरती माता हमें सिर्फ चेता रहीं है , कहीं हम इसकी दया का मजाक बनाकर यदि इसी तरह से दोहन करते रहे तो परिणाम हमें ही भुगतना होगा | 
         हमें पेड़ लगाकर पक्षियों को उनके निवास लौटाने होंगे, हमें विकास तो करना है लेकिन प्रकृति के दोहन के बिना, टेक्नोलोजी का उपयोग आवश्यकता के अनुरूप ही करना है ताकि इससे निकालने वाली खतरनाक किरणों का दुष्प्रभाव निरीह पक्षियों पर न हो | अंत में मैं इतना ही कहना चाहती हूँ कि “उस विधाता ने इस धरती पर,इस प्रकृति पर सभी को अर्थात छोटे से जीव से लेकर बड़े जीव तक को जीने का अधिकार दिया है तो हमें भी उनका यह अधिकार अपने तुच्छ लालच के लिए छिनना नहीं  चाहिए | अत: ” जियो और जीने दो” |

यह रचना जयश्री जाजू जी द्वारा लिखी गयी है . आप अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं . आप कहानियाँ व कविताएँ आदि लिखती हैं . 

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