संध्या उमड़ती

संध्या उमड़ती 

संध्या उमड़ती 
घुसी घरों में 
पाँव पसारती
देहली,द्वार

आँगन में,
खेतों से 
लौट आये 
जत्थे अनेकों 
मानवता के I 
पंख फैलाकर 
उड़ चलीं 
फरफर करती
टोलियाँ पंछियों की 
खोजतीं बसेरा I 
चुप होकर  बिटिया 
सो गई 
गोद में 
दादी माँ के I 
सुशोभित खड़े 
गीत सुनहरे 
होंठों पर 
गा उठी 
दादी 
मधु बरसाती I 

यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 ,  ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.com

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