महेंद्र भटनागर |
कितनी सुखद है धूप हेमन्ती !
॰
सुबह से शाम तक
इसमें नहाकर भी
हमारा जी नहीं भरता,
विलग हो दूर जाने को
तनिक भी मन नहीं करता!
॰
अरे, कितनी मधुर है
धूप हेमन्ती !
॰
प्रिया-सम
गोद में इसकी
चलो, सो जायँ,
दिन भर के लिए खो जायँ !
॰
कितनी काम्य
कितनी मोहिनी है धूप हेमन्ती !
कितनी सुखद है धूप हेमन्ती !
*
वहीं शिशिर की ठंडी रात में वह दुखी हो उठता है:
महेंद्र भटनागर स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता के बहुचर्चित यशस्वी हस्ताक्षर हैं। महेंद्रभटनागर-साहित्य
के छह खंड ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ अभिधान से प्रकाशित हो चुके
हैं।महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा के तीन खंडों में उनकी अठारह
काव्य-कृतियाँ समाविष्ट हैं। महेंद्रभटनागर की कविताओं के अंग्रेज़ी में
ग्यारह संग्रह उपलब्ध हैं। फ्रेंच में एक-सौ-आठ कविताओं का संकलन प्रकाशित
हो चुका है। तमिल में दो, तेलुगु में एक, कन्नड़ में एक, मराठी में एक
कविता-संग्रह छपे हैं। बाँगला, मणिपुरी, ओड़िया, उर्दू, आदि भाषाओं के
काव्य-संकलन प्रकाशनाधीन हैं।
DR. MAHENDRA BHATNAGAR
Retd. Professor
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110, BalwantNagar, Gandhi Road,
GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIA
Ph. 0751- 4092908
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