खुली किताब हूँ
मै कवि नही हूँ
खुली किताब हूँ
पन्ने पलटकर तो देखो
आभासी नही साक्षात् हूँ
फिर न कहना
राहुल कुमावत |
बंद जंजीरो में जकड़ा हूँ
में भूगोल ही नही
पूरा इतिहास हूँ
काले बादल काले अक्षर
जज्बातों की बरसात हूँ
में लिख दूँ कैसे?
जातिवाद पर
वो तो नग्न सोया
इंसानो की बस्ती मै
हर रोज मर रहे है
पाखण्डी वोटो की मस्ती मै”
ये कपटी”बाहरवाद का जहर घोल रहे है
जातिवाद से इसको तोल रहे है
ले सुन”21वी सदी में मूर्खो की परिभाषा
लालच फरेब की ये अभिलाषा
में कवि नही हु
खुली किताब हूँ
पन्ने पलटकर तो देखो
आभासी नही साक्षात् हूँ
कलम मेरी रो पड़ी स्याही को दे आघात
लिखने वाले लिख दिए
समाजवाद की वेदी पर
कलम मेरी टूट गई
वजनदार पैरो(जातिवाद)की एड़ी पर
– राहुल कुमावत
उम्र-20वर्ष
बोरसी दुर्ग
881887420