हे मानव खुद को मत समझो विशिष्ट

हे मानव खुद को मत समझो विशिष्ट

हे मानव खुद को ना समझो विशिष्ट,
और अन्य जीव-जन्तुओं को निकृष्ट!

तुम्हें यदि बुद्धि औ’ विवेक मिला है,
लेकिन तुम्हें इरादे नेक नहीं मिला है! 

हे मानव खुद को मत समझो विशिष्ट

तुम्हें कुत्ते सा घ्राण शक्ति मिला नहीं,
तुम्हें कहां है ज्ञान, खतरा भांपने की!

तुम हमेशा से ख्वाब देखते उड़ने की,
मगर पक्षियों की तरह उड़ पाते नहीं!

तुम पालतू पशुओं जैसे नहीं रह पाते,
वे बिना अन्न-जल निराहार भी रहते!

तुमको समय पर निर्मल जल चाहिए,
जीव गंदे नाले का पानी पी जी लेते!

चींटे के हमले से हाथी को मरते देखे,
सूक्ष्म जीवाणु के वार से इंसान मरते!

हम इंसान हैं, बिना इंसानियत के हीं,
हम मनुष्य हैं, बिना मनुष्यता के हीं!

सदियां बीत गई हैं मानवीय सृष्टि को,
फिर भी मनुर्भव: अबतक सफल नहीं!

जितना खोट भरा पड़ा, हम मानव में,
उतना विश्व के तमाम, जीवों में नहीं!


– विनय कुमार विनायक,

दुमका, झारखण्ड-814101

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