कुतुबमीनार-Qutub Minar

कुतुबमीनार दिल्ली से 12 मील दूर मेहरौली नामक गाँव में स्थित है। प्रारम्भ में इस मस्जिद का प्रयोग अजान के लिए होता था। किन्तु कालान्तर में इसे कीर्ति स्तम्भ के रूप में माना जाने लगा।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ई. में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया। ऐबक इस मीनार को चार मंजिला बनवाना चाहता था। किन्तु एक मंजिल के निर्माण के बाद ही उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गयी। अतः इसकी शेष मंजिलों का निर्माण 1231 ई. तक इल्तुतमिश ने पूर्ण करवाया।

 

प्रसिद्ध सूफी सन्त ‘ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी’ के नाम पर इसका नाम कुतुबमीनार रखा गया। इस मीनार का निर्माण इन्ही की स्मृति में कराया गया था।

 प्रारम्भ में यह मीनार चार मंजिला थी। फिरोज तुगलक के समय में इसकी चौथी मंजिल बिजली गिरने के कारण काफी क्षतिग्रस्त हो गयी। अतः फिरोज तुगलक ने उसे तुड़वाकर उसके स्थान पर दो मंजिलों का निर्माण करवाया।

 इस प्रकार वर्तमान में कुतुबमीनार पांच मंजिली व गोलाकार इमारत है। सिकन्दर लोदी के काल में पांचमी मंजिल के क्षतिग्रस्त होने पर उसकी मरम्मत करवायी गयी। कुतुबमीनार को कन्नौज विजय का स्मारक चिन्ह भी माना जाता है।

 पर्सी ब्राउन का मानना है कि “कुतुबमीनार का निर्माण विश्व के समक्ष इस्लाम की शक्ति के उद्घोष के लिए किया गया था। यह न्याय, प्रमुखता तथा धर्म के स्तम्भ स्वरूप का प्रतीक थी। उन्होंने इसे पूर्व तथा पश्चिम पर अल्लाह की छाया का प्रतीक माना।”

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला

 इसकी ऊँचाई लगभग 242 फीट है। यह नीचे से ऊपर की ओर पतली होती चली गई है। इसका निचला हिस्सा लगभग 15 मीटर है जो ऊपर की ओर जाकर मात्र 3 मीटर का रह जाता है। इसके बाहरी भाग पर अरबी तथा फारसी में लेख अंकित हैं।

 इस मीनार की प्रथम तीन मंजिलें पत्थर से निर्मित हैं, जिनमें बाहर की ओर बहुआ लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। ऊपर की दो मंजिलों में अन्दर की ओर बलुआ लाल पत्थर तथा बाहर की ओर सफेद पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस मीनार में प्रवेश के लिए उत्तर की ओर एक दरबारा बना हुआ है।

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