मूर्खो का समाज
आज उसके गालो पर लाली नहीं है
पर आज उसके गाल लाल है
दो तमाचे पड़े है अपने पति से
और क्या?
फिर भी आज खाना बनाया है
पति के हिस्से का भी
जिसे ठुकराकर वो चला गया है
हाँ माथा भी चूमा है उनका
पत्नी नाराज़ है
पर एक माँ नहीं
शाम को यही मिलेगी
इसी घर में
कपड़े भी धोएगी
बर्तन भी माझेगी
और शाम को खाना भी बनाएगी
बाप के घर नहीं जा सकती
बाप इतना अमीर नहीं है
तलाक नहीं दे सकती
इतनी पढ़ी लिखी नहीं है
मर नहीं सकती
अपने बच्चों की चिंता जो है
उसे गालियाँ दी जाएगी
उसे रोज़ जली कुटी सुनाई जाएगी
उसके बहस करने पर
मारा भी जायेगा
थप्पड़ उसके चेहरे के हिस्से पर लग रहे है
ये भी नहीं देखा जायेगा
न लिखा जायेगा
न पढ़ा जायेगा
ये मूर्खो का समाज है साहब
यहाँ किसी से
एक औरत का दर्द भी नहीं कहा जायेगा…
– रोहित सुनार्थी