करवटें जिंदगी की
मैं रुका नहीं था कभी
बस चलना चाहता था,
मैं गिरा नहीं था कभी
बस सम्भलना चाहता था,
मेरी हार देख तुमने
मिज़ाज बदल लिए,
यूं तो सबकी नजरों में
हमारी बहुत कद्र थी,
बस बदलते हालात में
तुम्हारे आँखों की फरेब़ित को
टटोलना चाहता था ।।
मैं हँसा नहीं था कभी
फिर भी लबों पर मुस्कुराहट चाहता था,
मैं थका नहीं था कभी
न जाने फिर भी क्यों राहत चाहता था,
तुम्हें तो खब़र भी न थी
मैं तुम्हारी मौजुदगी में
अपनी ही चाहत चाहता था ।।
मैं बुरा नहीं था कभी
फिर भी लबों पर शिकायत चाहता था,
सच कहूं मैं अपने ही घर में
खुद ही खुद के लायक चाहता था।।
गुड़िया कुमारी
धनबाद,झारखंड