खोल देना दिल के दरवाजे

खोल देना दिल के दरवाजे


खोल देना दिल के दरवाजे
जब भी दिखे कोई लाचार

दिल के दरवाजे

बूढ़े, लंगड़ा, अंधा या काना
पशु पक्षी या विविध प्राणी
घायल भटका  मूक प्राणी
बनना तुम उनका भी सहारा
उनको धीरे-धीरे सहलाना
सरस स्नेह उनपर  बरसाना
उनकी बदनीयती से मत घबराना
बस दिल मे अच्छे भाव रखना
थपकाना अपनेपन के प्यार से
इस रूप में तुम ईश्वर की
सच्ची साधना कर रहे हो
यह भी ईश्वर की संतान है
पर मुसीबत के ही मारे है
जीवन इसका ईश्वर के सहारे है
मन के सब दोष त्याग
इनके लिए भी अपनों जैसे
खोल देना दिल के दरवाजे ।

वजूद नारी का

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अंबर देख मुस्कुराता,
धरती पर खिले अधखिले फूल,
भेज देता कभी बदली को
सिंचने उस फूल को,
जो मुरझाने के करीब है।
ईश्वर देख कराहते

रेणु रंजन
रेणु रंजन

धरती पर नंगे अधनंगे मानुष,
भेज देता कोई भलेमानुष को,
दुख हरने उस मानुष का,
जो भूखे नंगे गरीब है।
पर धरती पर
सिसकती उस आत्मा को
हर कोई देखकर
अनदेखा कर देता,
जो जीवन का हर सांस
निछावर कर देती
दूसरों को ही सींचने में।
खुद के वजूद को भूलाकर
जो दूसरों के लिए जिए,
वह कहलाती देवी
गृहलक्ष्मी की पदवी पाती,
गर वही खुद के लिए भी
जीने की कोशिश करे
तो बन जाती स्वार्थी खुदगर्ज
कभी कभी तो कुलटा,
निर्लज्ज की विशेषण
से भी अलंकृत होती।
हे ईश्वर अब तू ही बता दे,
ये तेरा कैसा न्याय ,
नर को हर पहलू पर
देवता का ताज पहनाया,
पर नारी को तसवीरों में
तो देवी बनवाकर
फूल अच्छत चढ़वाता,
पर जिंदा नारी को
बदतर जिंदगी क्यों देता?
देवियां क्यों नही बनाता?

रेणु रंजन
शिक्षिका, राप्रावि नरगी जगदीश
पत्रालय : सरैया, मुजफ्फरपुर
मो. – 9709576715

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