जंगल ग्रह के मेहमान

जंगल ग्रह के मेहमान 

मीशू खरगोश देखने में जितना प्यारा था उतनी ही मीठी उसकी आवाज़ थी। उसका व्यवहार भी सबके साथ बहुत अच्छा था। सभी दोस्त कहते थे कि मीशू का नाम मीठू होना चाहिए। 
जंगल
उस दिन मीशू सुबह जल्दी सोकर उठ गया और चुपचाप रसोई में जाकर मम्मी के पास खड़ा हो गया। मम्मी चाय बना  रहीं थीं। मीशू को देखकर उन्होंने ‘गुड मॉर्निंग’ किया। मीशू ने मम्मी की ओर प्यार से देखते हुए पूछा,”मम्मा कितने दिन बचे हैं मेरा बर्थडे आने में।”
मम्मी जानतीं थीं कि मीशू को याद है, पर बर्थडे का इंतज़ार उससे नहीं हो रहा। इसलिए दिन में कम से कम पाँच बार मीशू यही सवाल करता था। 
“कल ही तो है बेटे का बर्थडे। ” मम्मी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। 
“नन्ही को बुलाना मत भूलना, वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है।” मीशू ने रोज़ की तरह मम्मी को याद दिलाते हुए कहा। 
“नहीं बेटा, नन्ही जैसी प्यारी गिलहरी को मैं कैसे भूल सकती हूँ? अब जाकर ब्रश करो और जल्दी से तैयार हो जाओ। हमें आज तुम्हारी पसंद के केक का आर्डर देने भी जाना है।”मम्मी के इतना कहते ही मीशू वॉशरूम में चला गया। रात को मीशू को बड़ी मुश्किल से नींद आई। 
आख़िर मीशू के बर्थडे का दिन भी आ ही गया। वह सब तैयारियाँ देख-देखकर खुश हो रहा था। बाहर पार्क में सुंदर सजावट हो रही थी। लाल,नीले और जामुनी रंग के कपड़ों से एक महल बनाया गया था। उसके चारों ओर नकली पेड़ लगाए गए थे, जिस पर तरह-तरह के फूलों और फलों के डिज़ाइन की लाइटें लगीं थीं। उन से कुछ दूरी पर नकली झरना बह रहा था। महल के अंदर एक ओर खाने-पीने का प्रबंध था तो दूसरी ओर खेलने का इंतज़ाम।सफ़ेद मोतियों से सजा झूला मीशू को बहुत आकर्षित कर रहा था। चारों ओर रंगबिरंगे गुब्बारे लगे हुए थे। मीशू को यह सब किसी परीलोक से कम नहीं लग रहा था। 
घर के भीतर एक कमरे में दरियाँ बिछ रहीं थीं। वहाँ एक मेज़ पर सुनहरी कपड़ा बिछाकर भगवान की तस्वीरें सजीं थीं। मीशू के दादाजी चाहते थे कि सबसे पहले थोड़ी पूजा की जाए फिर कुछ और।
दोपहर से ही मीशू के दोस्त आने शुरू हो गए।चुनमुन जिराफ़,किक्की लोमड़ी,शानू खरगोश,रिंकू ज़ेब्रा,शब्बी शेर और पिकलू बन्दर तो मीशू की क्लास में ही पढ़ते थे। हिप्पू दरियाई घोड़ा, डब्बू हाथी और नन्ही गिलहरी पड़ोस में रहते थे। नन्ही तो सुबह से आकर ही मीशू के साथ खेल रही थी। 
पूजा शुरू होते ही मम्मी ने मीशू को अपने पास बुला लिया। मीशू के साथ-साथ सब बच्चे भी पूजा के कमरे में चल दिए। चिंटू भालू अपने घर में टी. वी. देख रहा था। पंडितजी के भजन की आवाज़ उसके घर तक आ रही थी। आवाज़ कानों में पड़ते ही उसे याद आया कि मीशू के घर में पूजा शुरु होने का टाइम हो गया है। “अगर माइक नहीं लगा होता तो मुझे याद ही नहीं रहता पूजा में जाना, और फिर सब दोस्त मुझे हमेशा की तरह ‘भुलक्कड़ भालू’ कहकर चिढ़ाने लगते।” सोचते हुए चिंटू अपने मम्मी-पापा के पास भाग गया। उन्हें मीशू के बर्थडे की याद दिलाते हुए जल्दी-जल्दी तैयार होकर मीशू के घर चला गया। 
मधु शर्मा कटिहा
मधु शर्मा कटिहा
पूजा समाप्त होने के बाद सब प्रसाद खाने में जुट गए। पिकलू की मम्मी जल्दी से खाकर मीशू की मम्मी के कमरे में अपना मेकअप किट लेकर मेकअप ठीक करने चल दीं। उनको देखकर सब बच्चों की मम्मी भी अपना-अपना किट लेकर सजने चल दीं। थोड़ी देर बाद सब बाहर पार्क में आ गए। 
गप्पें मारते हुए सब कपड़े के महल में घुस गए। बच्चों ने तो केक कटते ही खेलना शुरू कर दिया। मीशू के पापा-मम्मी मेहमानों के साथ व्यस्त थे। कोई खाने की टेबल पर था तो कोई बच्चों के साथ खेलने में। सारा वातावरण खाने की खुशबू, परफ्यूम की महक और सबके हँसने की आवाज़ों से खुशनुमा बन गया था। 
अचानक ‘ठाएँ-ठाएँ’ की आवाज़ सुकर सब स्तब्ध रह गए। कुछ अजनबी लोग अंदर घुस आये थे। एक ने हाथ में गन ली हुई थी। शरीर की बनावट से तो भेड़िये लग रहे थे। पर उन्होंने अपना मुँह नक़ाब से ढका हुआ था, इसलिए ठीक से कुछ पता नहीं लग पा रहा था। वे लूटपाट करने वाले मालूम होते थे। सबको अपनी जगह खड़े रहने को कहकर वे आपस में कुछ चर्चा करने लगे। 
चिंटू भालू अपने  मम्मी-पापा के साथ बिलकुल पीछे खड़ा हुआ टेबल पर अपनी प्लेट रखकर चाट खा रहा था। टेबल के पीछे कपड़े के महल में थोड़ी सी खुली जगह दिखाई दे रही थी। चिंटू की मम्मी ने उसे इशारे से वहाँ से बाहर निकलने को कहा। वह चुपचाप टेबल के नीचे घुसा और जल्दी से निकलकर भाग गया। उसको देखकर सब बच्चे झुककर धीरे-धीरे वहाँ से निकल भागे। नक़ाबपोश अपनी योजना बनाने में व्यस्त थे। चिंटू के पापा-मम्मी जानबूझकर खाली जगह की ओर पीठ करके, एक दूसरे से सटकर खड़े रहे,ताकि बच्चों को नक़ाबपोश भागते हुए देख न पाएँ। 
बच्चे सहमे से मीशू के घर आ गए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या किया जाए? चुनमुन ने सलाह दी उन्हें जितना जल्दी हो सके पुलिस को बुलाना चाहिए। सबने सहमति में सिर हिला दिया। पर तभी किक्की ने याद दिलाया कि मोबाइल तो मम्मी-पापा के पास हैं। सब फिर से सोच में पड़ गए। शब्बी ने सुझाव दिया कि सब मिलकर पुलिस स्टेशन चलते हैं। सब शब्बी की बात मानकर चलने लगे, तभी शानू ने याद दिलाया कि बाहर निकलने का गेट तो वहीं है जहाँ ‘गंदे लोग’ गन लेकर खड़े हैं। सब निराश हो गए। नन्ही तो डर के मारे रोने ही लग गयी। तभी मीशू को एक उपाय सूझा। योजना के अनुसार सब मीशू की मम्मी के कमरे में गए। सबने मेकअप किट में से लिपस्टिक निकालकर एक दूसरे के शरीर पर आड़ी तिरछी रेखाएँ खींचनी शुरू कर दीं। मुँह पर काजल और मस्कारा लगाकर काला कर दिया। चिंटू भालू पर कोई रंग नहीं चढ़ रहा था इसलिए उसने घर पर ही रहने का फैसला किया। यह देखकर वे बड़े खुश हुए कि वे एक-दूसरे को ही नहीं पहचान पा रहे। उन्हें विश्वास हो गया था कि वे अब गंदे लोगों कीआँखों में धूल झोंककर बाहर निकल पाएंगे। 
एक-दूसरे का हाथ पकड़कर वे धीरे-धीरे आगे बढ़  रहे थे। जैसे ही गेट के पास पहुँचे नकाबपोशों में से एक ने उन्हें देख लिया। वह ज़ोर से हकलाता हुआ चिल्लाया,” क…. क…. कौन है वहाँ ?”
बच्चे उसकी आवाज़  सुनकर वहीं रूक गए। चिंटू बालकनी से सब देख रहा था। वह भागकर पूजा वाले कमरे में गया और माइक ऑन कर दिया। अपनी मोटी आवाज़ को और भी मोटी बनाकर वह माइक के सामने मुंह ले गया और बोलना शुरू कर दिया,” हम जंगल ग्रह से आये हैं। किसी भी बच्चे के बर्थडे पर हम अचानक कभी भी पहुँच जाते हैं-गिफ़्ट देने। पर रास्ते में कोई अगर हमें रोकता है तो हम उसे अपने साथ ले जाते हैं। वो देखो ऊपर, खड़ी है न हमारी स्पेसशिप।”  यह कहकर चिंटू ने माइक के पास लाकर ज़ोर-ज़ोर से ढोलक बजानी शुरू कर दी जो पूजा के सामान के के साथ ही रखी हुई थी। 
चिंटू के इतना कहते ही सभी बच्चे एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए ही अजीब सी आवाज़ निकालकर,आकाश की ओर देखते हुए ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। नक़ाबपोश एक दूसरे के पास आकर खड़े हो गए और आसमान की ओर देखने लगे। मौके का फ़ायदा उठाकर बच्चों के मम्मी पापा ने लुटेरों को पीछे से दबोच लिया और सबने मिलकर उनकी गन भी दूर फ़ेंक दी। हिप्पू के पापा ने जल्दी से फ़ोन करके पुलिस को बुला लिया। सभी शैतानों को पुलिस पकड़कर ले गयी। 
मीशू के बर्थडे की पार्टी फिर से शुरू हो गयी हो गयी। सभी दुगने उत्साह के साथ पार्टी का मज़ा लेने लगे। चिंटू मोटी आवाज़ निकालकर सबको हँसा-हँसाकर लोटपोट कर रहा था। नन्ही अपने पापा की गोद में जाकर बैठ गयी, वह अभी भी थोड़ी डरी हुई थी। मीशू मन ही मन सोच रहा था कि आज की पार्टी का किस्सा वह एक डायरी में लिखकर उसे यादगार बना लेगा। 

यह रचना  मधु शर्मा कटिहा जी द्वारा लिखी गयी है . आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से लाइब्रेरी साइंस में स्नातकोत्तर  किया है . आपकी  हिन्दी पठन-पाठन व लेखन —-कुछ कहानियाँ व लेख  प्रकाशित हो चुके हैं। 

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