जी चाहता है

जी चाहता है

तेरा साथ पाने को जी चाहता है ,
वो लम्हें बिताने को जी चाहता है ।
तेरे संग जितनी खुशियाँ थी पाई ,

जी चाहता है

यूँ ही खिलखिलाने को जी चाहता है ।
तेरे प्यार की रोशनी है जरूरी ,
दामन जलाने को जी चाहता है ।
रूठने मनाने का खेल था निराला ,
तुझको सताने को जी चाहता है ।
मय्यशर हमें तू फिर से हो जाए ,
कैदी बनाने को जी चाहता है ।
राह हमने देखी या निगाहें बिछाई ,
फिर से भटकने को जी चाहता है ।
लगते तुम्हारे क्या पूछते थे अक्सर  ,
धड़कन बताने को जी चाहता है ।
सिखाया था तुमने जो प्यार का पहाड़ा ,
सबक दोहराने को जी चाहता है ।
माना हमें है मोहब्बत बीमारी ,
ये मर्ज लगाने को जी चाहता है ।

यह रचना पुष्पा सैनी जी द्वारा लिखी गयी है। आपने बी ए किया है व साहित्य मे विशेष रूची है।आपकी कुछ रचनाएँ साप्ताहिक अखबार मे छप चुकी हैं ।

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