थूको और चाटो ! चमरासुर उपन्यास (7) / शमोएल अहमद

 थूको और चाटो !

ये वी.डी.ओ. भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था | और चमरासुर की आँखें सुर्ख थीं | कुछ दिन पहले पास के राजपुर गाँव में ये घटना घटी थी और चमरासुर  जिल्लत के एहसास से भरा था | वो अजीब सी विवशता का शिकार था | उसे शंका थी कि कोई दलित आत्महत्या न कर ले | ये सोच कर वह दुख से भर गया कि लोग मनुस्मृति को गुज़रे ज़माने की चीज़ समझ रहे हैं | उन्हें समझना चाहिए कि सामाजिक और मजहबी धरातल पर मनुस्मृति अभी भी मान्य है | यही वजह है समाज आज भी शूद्र को नीच दृष्टि से देखता है | चमरासुर को याद आया कि अम्बेडकर के समय में ब्राह्मणों ने ज़ात-पात तोड्क मंडल का गठन किया था | एकबार उनको वक्तव्य देने वहाँ बुलाया गया था | वे गये नहीं थे लेकिन आलेख भेज दिया था | ब्राह्मण आलेख में संशोधन चाहते थे लेकिन अम्बेडकर राज़ी नहीं हुए | अम्बेडकर ने इसे इन्हिलेशन आफ कास्ट के शीर्षक से किताबी शक्ल में छपवाया | महात्मा फुले ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ मुहिम चलाई थी जिसे अम्बेडकर ने हवा दी थी | अम्बेडकर की विचारधारा को समाजवादी नेताओं ने कैश किया | किसी ने नहीं सोचा था कि अम्बेडकर के विचारों को बुनियाद में रखकर सत्ता हासिल की जा सकती है | सियासतदानों ने इस पर अमल किया और मकसद में कामयाब हुए, सत्ता का सुख उठाया लेकिन जातिवाद ख़त्म करने की कोशिश  नहीं की | चमरासुर को ये सोच कर हैरत हुई कि किसी दौर में भी हुकूमत ने जात-पात को ख़त्म करने के लिए कदम नहीं उठाए | अम्बेडकर ने कभी कोशिश भी की तो मनुवादियों ने दबा दिया और उनको बौद्ध-धर्म में शरण लेनी पड़ी | खुद गाँधी ने इनका विरोध किया | क्यों न करते ? वो बनिया थे और अम्बेडकर दलित | मनुस्मृति ने तीन वर्ग को विश्वसनीय माना है | ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य| अम्बेडकर ज़ात के मुहार थे | मुहार शूद्र है और बनिया वैश्य | बनिया शूद्र को प्राथमिकता क्यों देगा? लेकिन उसको वोटबैंक बनाएगा | 2014 के चुनाव में दलित समाज के पढ़े लिखे तबके ने अहले-इमारत की झोली में वोट डाले थे | तबसे ये दलितों को लुभाने में लगे हैं | अम्बेडकर को अपना आदर्श भी मानने लगे हैं | अजगर की पत्रिका ने सौ पन्ने अम्बेडकर पर खर्च किए हैं और दूसरी तरफ दलितों पर ज़ुल्म भी बढ़ते जा रहे हैं | सरकार ज़ुल्म पर शिकंजा कसने की बात करती है कसती नहीं है | चमरासुर इस बात से बेचैन हुआ कि घड़ियाली आँसू बहाने वाले नेताओं से दलितों को किस तरह बचाया जाए ? जबतक दलित वोटबैंक हैं इन पर ज़ुल्म होते रहेंगे | नेता इन्हें वोटबैंक की मशीन समझते हैं | दलित नेता धनवान हो गये बहन जी हीरे के बुँदे पहनने लगीं और दलित भूख मरने पर उतारू है | मजहब और ज़ात के नाम पर वोट पड़ेंगे तो कोई न कोई तबका वोटबैंक बना रहेगा | ज़रूरत है दलितों में चेतना जगाने की | हमें अपनी एक संस्था बनानी होगी जहाँ हम दलितों को एक सूत्र में बाँध सकें और इन्हें मनुस्मृति के प्रभाव से बाहर निकाल सकें | मनुस्मृति तो सामाजिक व्यवस्था की बुनियाद है जो अपना काम कर चुकी | इंसान को हमेशा के लिए फिरकों में बाट चुकी | दलित फिरके को मानवाधिकार से वंचित कर दिया | इनके वजूद को घृणा और रोष का पात्र बना दिया | और अहले इमारत चुप हैं | चुप्पी एक पैग़ाम देती है ….हम ऊँची जात के लोग हैं….हम हिंदुत्व की विचारधारा लागू करेंगे …..और तुम….तुम जमीन पर थूको और चाटो ….!

और राजपुर गाँव में ही थूक चाटने की घटना घटी थी |

एक दलित का बिना दस्तक दिए सवर्ण के घर में घुसना महापाप है | बुधवा चमार किसी की कुर्सी पर नहीं बैठा था | वो दस्तक दिए बिना सरपंच के घर में दाखिल हुआ था जो जात का राजपूत था | सज़ा मिलनी ही थी | गालियों की बौछार के साथ राजपूत ने चमार को कई जूते लगाए | फिर हुक्म दिया कि चाट जमीन पर थूक कर ….! सरपंच के बेटे ने सारा दृश्य कैमरे में क़ैद कर लिया और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया | जिस वक़्त बुधवा ज़मीन पर घुटनों के बल झुका थूक चाट रहा था चमरासुर पर कंपकपी तारी थी | वह साफ़ देख रहा था कि बुधवा का जिस्म काँप रहा है , चेहरे पर बेबसी है, आँखों में जिल्लत के आँसू थरथरा रहे थे | वह ग्लानि से भर उठा | उसको लगा पूरा समुदाय घुटनों पर झुका थूक चाट रहा है | और तब निराशा और बेबसी के इन  क्षणों में उसको एहसास हुआ कि आखिर क्यों जगदीश मजदूर और दूसरे दलितों ने आत्महत्या को ऐसी जिंदगी पर प्राथमिकता दी थी | वी.डी.ओ. बनाया और सरकार खामोश है| इमारत के किसी सदस्य ने भी इसकी भर्त्सना नहीं की | यह फासीवाद है जो हुकूमत के इशारे पर समाज में अपनी जड़ें फैला रहा है | 

चमरासुर ने एक संस्था बनाने की योजना पेश की जिस पर दोस्तों ने सहमति जताई | संस्था का नाम महिषासुर

थूको और चाटो ! चमरासुर उपन्यास (7) / शमोएल अहमद

संघर्ष वाहिनी प्रस्तावित हुआ | रुक्मिणी चाहती थी कि एक पत्रिका भी जारी हो ताकि अपनी बात दूर दूर तक फैला सकें और दलितों को संगठित कर सकें | सैफ ने इस बात पर जोर दिया कि दलित, पिछड़ी जाति और मुस्लिम को एक हो जाना चाहिए तब ही फासीवाद से लड़ सकते हैं | सैफ ने संस्था का मेनीफेस्टो तैयार करने की जिम्मेवारी ली | रुक्मिणी बहुत उत्साहित थी कि हम जातिवाद को जड़ से उखाड़ फेकेंगे | उसने इस बात को उजागर किया कि इसका मतलब ये नहीं है कि हम मनुवाद की जगह दलितवाद ले आएँ | हम मनुस्मृति को दलितस्मृति से नहीं बदल रहे हैं बल्कि हमें और भी भलाई के काम करने हैं | हमारे पास निधि होगी तो हम तालीमी संस्थाएं कायम करेंगे | ये संस्थाएं जाब-ओरिएन्टेड होंगी ताकि प्रशिक्षण के बाद गरीबों को नौकरी मिल सके | जैसे कम्पूटर असम्बली और हार्डवेयर असम्बली | हमारा कम्पूटर सेंटर होगा जहाँ प्रोग्रामिंग और वेब डिजाईनिंग की भी तालीम दी जाएगी | सैफ का ख्याल था कि हर चौराहे पर नुक्कड़ नाटक भी खेलना चाहिए जिसमें सियासी और सामाजिक विकृतियों को नुमायाँ किया जाए | एक गायन मंडली भी होगी जो घूम घूम कर दलित सॉंग गाएगी जिस तरह इस्कान वाले कृष्ण के गीत गाते हैं |

चमरासुर सब की बात सुन रहा था | अचानक गम्भीर लहजे में बोला |

‘’ सबसे पहले हमें लडाकों की टोली बनानी होगी….महिषासुर आर्मी ! हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे | हम पर हमला कभी भी हो सकता है और हमें जवाबी हमले के लिए तैयार रहना होगा | ‘’

‘’ इतने सारे कामों के लिए बहुत सारे पैसों की ज़रूरत होगी | फंड कहाँ से आएगा ? ‘’ सैफ ने बुनियादी सवाल किया | ‘’

चमरासुर के होंटों पर रहस्यमयी मुस्कराहट फ़ैल गयी | उसने जेब से मोबाइल निकला और रख लिया |

सैफ ने महिषासुर संघर्ष वाहिनी के पंजीकरण की शुरुआत की लेकिन अड़चन पैदा हो गयी | रजिस्ट्रार को शब्द महिषासुर पर आपत्ति थी | इससे समाज में दहशत का मैसेज जाता था | उसका सुझाव था कि नाम बदल कर दलित संघर्ष वाहिनी कर दो | लेकिन चमरासुर को ये कुबूल नहीं था | रजिस्ट्रार ज़ात का ब्राह्मण था | अपनी बात पर अड़ा रहा | सैफ ने रास्ता निकाला कि घूस दिया जाए | चमरासुर और रुक्मिणी ने सहमति जताई | तब सैफ पचीस हजार की थैली लेकर रजिस्ट्रार से उसके घर पर मिला | कुछ हाँ ना करते हुए उसने रकम कुबूल कर ली |

– शेष अगले अंक में 

– शमोएल अहमद 
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