पीड़ा
पीड़ा,जीवन का आधार विकल
पीड़ा,जीवन का सार अटल।।
पीड़ा,मनमीत का रंग रूप
पीड़ा,जीवन का प्रतिबद्ध सकल।।
पीड़ा,आकर्षण का घोर नयन
पीड़ा,विकर्षण का वीभत्स चयन
पीड़ा,जीवन का प्रतिरूप बदल।।
पीड़ा,तथागत का बुद्धत्व
पीड़ा,तथागत का अमरत्व
पीड़ा,प्रज्ञा वक्र सम
पीड़ा,धैर्य में है सरल।।
पीड़ा,सत्य का आभास जगत
पीड़ा,असत्य तम का विगत
पीड़ा,जीवन का स्वरूप पटल।।
पीड़ा,ध्यान,ज्ञान,करूणा सम्मान
पीड़ा,विरह का रूपक गान
पीड़ा धरा पीड़ा आसमां है कमल।।
पीड़ा,मानव का नि:स्वार्थ अस्तित्व
पीड़ा,प्रति प्राणी का विशेष व्यक्तित्व
पीड़ा,सरिता का रूप प्रतिफल।।
पीड़ा,जीवन,पीड़ा शाश्वत का अंत
पीड़ा,प्रकृति का बीज अनंत
पीड़ा,मेरे शब्द स्वर,
पीड़ा है मेरा एक पल।।
बारिश और घर
छत पर घड़ियाल बैठा है…
गिरते हैं छत के जबड़े,
कोने कोने में बवाल बैठा है!!
घर के मेरे आईने में
सब कुछ सिमटा है बस,
दीवारों के चारों तरफ…
सांप का खाल बैठा है!!
जहां पर रहते हैं हम
हर एक जगह निशान था,
अब वहां मेरे बाद…
मेरे जिस्म का कंकाल बैठा है!!
कुछ अच्छा कुछ बुरा
जिंदगी के नाम कर दिया,
जो बचा मेरे कंधों पर…
बस तेरा ख्याल बैठा है!!
किरणों से भरे मेरे आंगन में
कोई था बहुत पहले,
धुंध परछाई किसकी है,
जेहन में यह सवाल बैठा है!!
तुम्हारे जुल्फों में रात
बारिश में भीगे तुम्हारे सलोने गात
आज ठहर गयी तुम्हारे जुल्फों में रात।।
दोस्त हो या रकीब हो
कुछ भी हो,तुम दिल के करीब हो
जो मिल जाए मुझे मंजिल
तुम मेरी वह तरकीब हो,
दिल में गुजरे फिर से तुम्हारे हसीन जज्बात
आज ठहर गयी तुम्हारे जुल्फों में रात।।
ख्यालों की धुंध में तुम ही मेरे ख्वाब हो कभी जो घट न सके मेरे शुरूर ए शबाब हो
कभी आईने से उतर कर देखो
तुम मेरे तन्हाई के महताब हो,
पल-पल याद आए तुम्हारे लफ्जों की हर बात,
आज ठहर गयी तुम्हारे जुल्फों में रात।।
– राहुलदेव गौतम