प्रेम की कविता

प्रेम 


प्रेम एक भावना नहीं
रक्त प्रवाह है जो ताउम्र नस नस में रक्त बन बहता है
प्रेम में इस सृष्टि का हर जन रहता है
प्रेम को परिभाषित नहीं कर सकते
बस महसूस कर सकते
वो अनुभूति
वो एहसास
वो परम आनंद
प्रेम भी लेता कई रूप
हर पल बदलता इसका स्वरूप
वात्सल्य प्रेम मां  में उमड़े
सखा भी सुदामा का दामन पकड़े
बचपन संग खेले कभी-कभी
मीरा बनी इसी वश  जोगी
राधा का संगम,प्रेम बिन अधूरा
सर्वस्व समर्पण पा लिया कान्हा पूरा
नाम के लिए कभी झडपे
ओ”प्रेमी भी संग को तडपे

प्रेम की कविता
प्रेम की कविता

प्रेमिका की झलक पाने को
मजनू रांझा श्री तैयार उसमें समाने को
ताज शाह की अनमोल धरोहर
पद्म ने किया जिस से जोहर
देवदास तन मन भुला
भगत फांसी पर झूला
बेजुबान की भाषा बनता
उड़नतू की उड़ान बनता
अधूरे शब्द को हर कोई पूरा करता
बनके रक्त नस नस में बहता
बनके रक्त नस नस में बहता
प्रेम
प्रेम
प्रेम

– सोनिया अग्रवाल 
प्राध्यापिका अंग्रेजी
राजकीय पाठशाला सिरसमा
कुरूक्षेत्र

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