भोर का तारा एकांकी Bhor ka Tara

भोर का तारा एकांकी Bhor ka Tara

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भोर का तारा एकांकी की कथावस्तु /सारांश –

कथा वस्तु का चयन गुप्तकालीन ऐतिहासिक वातावरण से किया गया है .शेखर उज्जयनी का एक प्रतिभाशाली कवि है .गुप्त साम्राज्य का एक वरिष्ठ कर्मचारी माधव उसका मित्र है .छाया स्कंदगुप्त के मंत्री देवदत्त की बहन और शेखर की प्रेयसी है .देवदत्त तक्षशीला के क्षत्रप वीरभद्र के विद्रोह को दबाने के लिए ,माधव के साथ तक्ष शीला जाते समय ,छाया और शेखर का विवाह कर देता है .शेखर अपनी प्रेयसी और पत्नी छाया की प्रेरणा से भोर का तारा नामक मधुर काव्य की रचना करता है .छाया इसे अपने प्रेम की प्रतिक मानती है .इसी समय माधव तक्षशीला से लौटकर हूणों के बर्बर आक्रमण और आर्य देवदत्त की वीरगति का समाचार देता है .वह छाया और शेखर से प्रार्थना करता है कि वे राष्ट्र के पौरुष को जगाएं .शेखर अपनी कविता से राष्ट्र की सोयी शक्तियां लगा दे ,जिससे हूणों का आक्रमण विफल हो जाए .शेखर को अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का ज्ञान हो जाता है वह अपने श्रृंगार काव्य भोर का तारा को आग में जला देता है और अपनी कविता के भैरव घोष से राष्ट्र की आत्मा को जगाने चल देता है . 

भोर का तारा एकांकी अभिनय की दृष्टि – 

इस एकांकी की कथावस्तु बड़ी मनोहर है .पूरी एकांकी दो दृश्यों में समाप्त हुई है .दोनों दृश्यों के समय में भी थोडा अंतर है .अतः देश और काल का चुस्त संकलन नहीं है ,किन्तु अभिनय की दृष्टि से यह एकांकी पर्याप्त सफल रहा है .इसके संवाद काव्यात्मक और कथावस्तु प्रेरणादायक है . 

भोर का तारा एकांकी के पात्र – 

शेखर ,छाया और माधव केवल तीन चरित्रों के माध्यम से एकांकी का रचना विधान है .शेखर का चरित्र ही एकांकी का प्राण है .इसे राष्ट्रीय चेतना प्रधान कवि के रूप में चितित्र किया गया है .जनहित और राष्ट्रीय उपयोगिता को श्रेष्ठ कविता की कसौटी स्वीकार किया गया है .कल्पना प्रधान व्यक्तिगत प्रेम के गीत काव्य को अग्नि को समर्पित करके शेखर ने इस उद्देश्य को स्पष्ट कर दिया है . 
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