मैला आँचल उपन्यास की सामाजिक राजनीतिक भूमिका

मैला आँचल उपन्यास की सामाजिक राजनीतिक भूमिका

मैला आँचल उपन्यास की सामाजिक राजनीतिक भूमिका मैला आँचल में ग्राम्य समस्या का चित्रण मैला आँचल यथार्थवादी समस्यामूलक आंचलिक उपन्यास है।यह एक सीमित किन्तु व्यापक क्षेत्र का एक ऐसा चित्र, जो अनेक छोटी-बड़ी मानव-जीवन की समस्याओं को प्रस्तुत करता है।मेरीगंज अंचल को पिछड़े गाँव के प्रतीक के रूप में मानकर रेणु ने अपने उपन्यास का केन्द्र माना है और उसी की समस्याओं को मूलतः प्रस्तुत किया है।राजनीतिक चेतना को चित्रित करने के लिए मैला आँचल में उपन्यासकार ने नगरीय जीवन की समस्याओं को भी समाविष्ट किया है।वास्तव में मेरीगंज के आंचलिक जीवन की समस्याएँ केवल स्थानीय समस्याएँ नहीं हैं बल्कि देशव्यापी समस्याएँ हैं। मेरीगंज अंचल भारत के पिछड़े गाँव का प्रतीक है। उस समय भारत के प्रायः सभी गाँव पिछड़े हुए थे, बल्कि सारा भारत पिछड़ा हुआ था, क्योंकि भारत गाँव का देश है। भारत की राजनीतिक पार्टी में कांग्रेस आज भारत के सोये हुए अंचल को जगाने का प्रयास कर रही थी। इस प्रकार देखें तो मेरीगंज भारतीय गाँव का प्रतीक है। उसकी समस्याएँ देश की समस्याएँ हैं।

मैला आँचल में उपन्यासकार ने अनेक समस्याओं को उठाया है, जिनमें से कुछ विशिष्ट समस्याएँ हैं, जिनका विश्लेषण निम्नवत् किया जा सकता है –

भूमि सम्बन्धी समस्या, जन सामान्य के शोषण की समस्या और जमींदारी प्रथा, जातिभेद की समस्या, यौन समस्या, सांस्कृतिक उत्थान की समस्या, अन्धविश्वास एवं धर्म संस्थानों की समस्या. राजनीतिक दलों के मतभेद की समस्या, स्वातन्त्रयोत्तर भारत में जन्म लेने वाली समस्याएँ जैसे- पदलोलपता,स्वार्थपरता, भ्रष्टाचार आदि। ये सभी समाज के पाँच विभिन्न पक्षों आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा राजनीतिक से सम्बन्धित हैं, जो समाज के वास्तविक रूप को प्रस्तुत करती है। उन सभी समस्याओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में उचित समाधान भी उपन्यासकार ने प्रस्तुत किया है।

आर्थिक समस्या 

आलोच्य उपन्यास मैला आँचल की सर्वप्रमुख समस्या आर्थिक समस्या है। इसके दो पक्ष है, भूमि तथा जमींदारी

मैला आँचल उपन्यास
मैला आँचल उपन्यास

और शोषण। खेती ग्रामीण जीवन का मूल आधार है, जिसके लिए भूमि चाहिए। अतएव किसान एवं भूमि का सहज सम्बन्ध होना स्वाभाविक है। डॉ. प्रशान्त इस सम्बन्ध का अनुभव करता है कि खेतों में फैली हुई काली मिट्टी की संजीवनी ही इन्हें जिलाये  रखती है। ऐसी हालत में जमींदार हरि गौरी की क्रूरता का शिकार अपनी जमीनों से बेदखल कर दिया गया किसान छटपटाता है। कांग्रेस और सोशलिस्ट दोनों ही राजनीतिक पार्टियाँ अपनी-अपनी भूमि नीतियों से किसानों की भूमि लूटने का प्रयास करते हैं। सरकार का भूमि सम्बन्धी एक्ट और जमीदारी उन्मूलन एक्ट, गाँव के संस्थानों के साथ हुए शस्त्र-संघर्ष, हत्या और बलात्कार का कारण बनता है। इसी के साथ जमींदारी समस्या भी जुड़ी हुई है। तहसीलदार विश्वनाथ अपनी चतुर नीति और महाजनी हथकण्डों को अपनाकर लगभग सारे गाँव की जमीन हथिया लेता है। गाँव के किसान को मिलों में मजदूरी करने को मजबूर होना पड़ता है। उनकी यह शोषण नीति और जमींदारी प्रथा सारे गाँव को उजाड़ देती है। सुनहले खेतों वाली स्वर्णांचला धरती शोषण के कारण मरणांचला हो गयी है। इस समस्या का समाधान लेखक ने विश्वनाथ प्रसाद का हृदय परिवर्तन कराकर गाँव की हथियायी गयी जमीन को वापस कराने को कहता है। वास्तव में भूमि समस्या का यह निराकरण उचित नहीं प्रतीत होता, बल्कि यह कमली के जीवन तथा उसकी अपनी प्रतिष्ठा के साथ जुड़ा हुआ है।

पिछड़ेपन की समस्या

उपन्यासकार ने गाँव के पिछड़ेपन की समस्या को भी आलोच्य उपन्यास में वर्ष्या-विषय के रूप में ग्रहण किया है। इसका दो कारण है- आर्थिक और सांस्कृतिक। इस समस्या का सर्वांगीण चित्रण उपन्यास में किया गया है। गाँवों की वास्तविक दशा का वर्णन ममता को लिखे  गये डॉ. प्रशान्त के पत्र में उपलब्ध होता है

“तुम जो भाषा बोलती हो, उसे ये समझ नहीं सकते। तुम इनकी भाषा नहीं समझ सकती। तुम जो खाती हो, ये नहीं खा सकते……………. फिर तुम उन्हें आदमी कैसे कहती हो?” ……. … वह आदमी का डॉक्टर है, जानवर का नहीं। ………. भूख और बेबसी से छटपटाकर …… ..तिल-तिलकर घुल-घुलकर मरने के लिए उन्हें जिलाना बहुत बड़ी क्रूरता होगी। …… यहाँ . इन्सान हैं कहाँ। अभी पहला काम है जानवर को इन्सान बनाना।”

गाँव में घातक बीमारियों को वैज्ञानिक उपायों द्वारा समाधान व सांस्कृतिक उत्थान की समस्या को प्रस्तुत करता है। मिट्टी और मनुष्य की गहरी मुहब्बत कथन के द्वारा रेणु ने प्रशान्त को वैज्ञानिक की जगह एक ग्राम साधक का योगी बना दिया है। मैला आँचल की महत्त्वपूर्ण समस्या राष्ट्रप्रेम से भी सम्बन्धित है। मेरीगंज में राजनीतिक चेतना का क्रमिक विकास प्रस्तुत करना रेणुजी का उद्देश्य रहा है, जिसमें वे पूर्ण सफल भी रहे हैं।संयोजक जी, बालदेव, कालीचरन, बावनदास, छोटन बाबू, तहसीलदार आदि पात्र राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रमख राजनीतिक दल दो ही हैं- कांग्रेस और सोशलिस्ट।कांग्रेस के सदस्यों में कितनी अनैतिकता, स्वार्थपरता, पदलोलुपता भरी हुई है। इसका दिग्दर्शन तब होता है, जब बावनदास बालदेव के सम्मुख कराहता हुआ कहता है

“सब चौपट हो गया ………… देश को भस्म कर देंगे ये लोग। भस्मासुर। ……. क्या कहेगा सोसलिस्म हमको। …… सब पार्टी समान। उस पार्टी में भी जितने बड़े लोग है, मंतरी. बनने के लिए मार कर रहे हैं। सब एमेले-मंतरी होना चाहते हैं बालदेव । देश का काम गरीबों का काम, चाहे मजदूरों का काम, जो भी करते हैं, एक ही लोभ से।…………. और इस तरह रेण ने सारे देश की राष्ट्रप्रेम सम्बन्धी राजनीतिक समस्या को स्पष्ट किया है।”

सामाजिक समस्या

सामाजिक समस्याओं में अन्धविश्वास आदि की छुटपुट समस्याएँ आदि उठायी गयी हैं। इन सबमें महत्त्वपूर्ण समस्या है- अनैतिक यौन सम्बन्धों की। मैला आँचल का प्रत्येक पात्र चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, अपने विपरीत यौन सदस्य के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाये हुए दीखता है – 

  • उपन्यासकार ने इस समस्या का व्यापक स्तर पर चित्रण किया है। इस समस्या के कतिपय कारक प्रमुख हैं – प्रथम कारण है कि विवाह योग्य होने पर भी माता-पिता द्वारा कन्या का विवाह न करना, उसे बच्ची समझकर उसके प्रति असावधान रहना। कमला ऐसी ही एक युवती है, जिसके नैतिक पतन के जिम्मेदार उसके माता-पिता हैं।

  • द्वितीय कारण, अनैतिक यौन सम्बन्ध का एक कारण निम्न वर्ग में फैली गरीबी और बाल विवाह की प्रथा है, जिसके परिणामस्वरूप स्त्रियाँ जवानी में ही विधवा होकर कामेच्छा की पूर्ति के लिए किसी दूसरे का आश्रय ढूँढ़ती हैं। कुलिया और रम पियरिया ऐसी ही युवतियाँ हैं। कुलिया को वेश्या कहा जा सकता है, जो दौलत और बाहरी चमक-दमक को देखकर किसी भी व्यक्ति के साथ यौन-व्यापार की भागी बन सकती है। इसका कारण उसकी दरिद्रता और अतिशय कामेच्छा है।

  • तीसरा कारण है, केवल कामतुष्टि की भावना से प्रेरित होकर अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करने वाली स्त्रियाँ। जोखती जी की चार पलियाँ हैं। परिणामतः स्त्री का नैतिक पतन होता है। इस प्रकार उपन्यासकार ने अनेक कारणों पर बल देते हुए इस समस्या पर व्यापक बल दिया है।
इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि रेणु ने समस्याओं को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है, जो भी समाधान दिये हैं वे कुछ अर्थों में आदर्शवादी कहे जा सकते हैं। मूलतः मैला आँचल एक समस्याप्रधान उपन्यास हैं, जो यथार्थ भावभूमि पर अधिष्ठित है। इसे हम समाजवादी यथार्थ का उपन्यास कह सकते हैं।

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