वृक्ष मानव जीवन का आधार

वृक्ष मानव जीवन का आधार

वृक्ष के साथ 
याद करके गाछों को
मन होता है
जंगल घना अमराई का
पहले घरों में होता था
आँगन के बीच रोपा गया वृक्ष
सहज ही स्मरण था पूर्वजों का
यह लगाया था दादा ने
यह बड़के बाऊ ने रोपता
गर्व से आँखें चमकती हैं
कितने खाए फल
पाई घनी छाया
आखिर वृक्ष हो गए माया
सिमटते आँगनों में उगा आयें हैं
कंक्रीट के जंगल

वृक्षारोपण

वृक्ष मानव जीवन का आधार

रोपें जा रहे पौधों के साथ

सेल्फी ( स्वयं चित्रित )
पूर्णचित्र
सजीव मुद्रा में फटाफट खींचे गए
सुर्खियाँ बने कुछ दिनों तक
इन दिनों में कुछ पौधें पनपे
कुछ मुरझा गए
कुछ को कोई भी खा गए
अगले वर्ष उन्हीं स्थलों पर
वही कोई भी करेंगे
नए वृक्षारोपण समारोह का आयोजन
पुनः पटकथा लिखी जायेगी
दिवास्वप्न में धरा पुनः हरहरायेगी l

नियंता -1

पहले वृक्ष की छाया में था
मानव
अब छाया में है वृक्ष
बोनसाई बनकर
गठीले तन में तनकर
गमलों में सज्जित हो गया
पेड़ों वाला घर
अब लता पौधों वाला हो गया
अब मानव नियंता हो गया l

नियंता- 2

कटे हुए वृक्षों के साथ
धरती हुयी अमाथ
सजते थें जो ताड़, साल
कटते जा रहे साल दर साल
अब तपेगा कपाल
मानव पुनः लिखेगा
अपनी नियति
नियंता होकर
दिवास्वप्न
बच्चा पूछता है पेड़ का नाम
बापू भी नहीं जानता
ऱोज बरतता है पेड- पौधों को
अब नवीन अभिन्न नामों से
यद्यपि युगों से उसका नाता है
बाज़ार के हाथ लगते ही वह
उत्पाद जाता है
इधर बिकवाली बढ़ी है
आयुर्वेद और योग के गठजोड़ से
अब सुखकारी है
फिर से लौटना स्मृतियों में
नीम, गिलोय, आंवला , हर्र ,बहेड़ा की शरण में
स्वप्न मध्यान्तर में है
सत्य होता है भौर का स्वप्न
दादी कहती थीं
दिन का स्वप्न तो
दिवास्वप्न होता है l

 – डॉo सुशील सायक

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