व्याकरण का उस पर नियन्त्रण कर दिया गया है। भाषा यदि साध्य है तो व्याकरण उसका साधन है।
व्याकरण का अर्थ
व्याकरण का अर्थ है व्यांक्रियन्ते। व्याकरण के द्वारा किसी भी विषय को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। व्याकरण किसी विषय को भाली प्रकार से समझने के लिए किया जाता है। जो विषय छात्रों की समझ से बाहर होता है उसका व्याकरण के माध्यम से सीखा जाना अति लाभदायक सिद्ध होता है।
व्याकरण की परिभाषा
पंतजलि के अनुसार- ‘‘महाभाषय में व्याकरण (शब्दानुशासन) कहा है।’’
व्याकरण की विशेषताएँ
- व्याकरण भाषा की शुद्धता का साधन है साध्य नहीं।
- व्याकरण भाषा का अंगरक्षक तथा अनुशासक है।
- व्याकरण वास्तव में ‘शब्दानुशासन’ ही है।
- व्याकरण भाषा के स्वरूप की सार्थक व्यवस्था करता है।
- व्याकरण भाषा का शरीर विज्ञान है तथा व्यावहारिक विश्लेषण करता है।
- गद्य साहित्य का आधार व्याकरण है।
- भाषा की पूर्णता के लिए-पढ़ना, लिखना, बोलना तथा सुनना चारों कौशलों की शुद्धता व्याकरण के नियमों से आती हैं।
- भाषा की मितव्ययिता भी व्याकरण से होती है।
- वाक्य की संरचना शुद्धता उस भाषा के व्याकरण से आती है।
- व्याकरण से नवीन भाषा को सीखने में सरलता एवं सुगमता होती है।
व्याकरण शिक्षण की आवश्यकता
व्याकरण की शिक्षा, भाषा-शिक्षण का अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण अंग है। व्याकरण भाषा का दिशा निर्देशन करता है और उसे सरलता से अपेक्षित लक्ष्य तक पहुँचाता है।
व्याकरण के नियमों का ज्ञान, छात्रों में ‘मौलिक’ वाक्य संरचना की योग्यता का विकास करता है। भाषा की मितण्ययिता के आधार हेतु व्याकरण के नियमों का ज्ञान आावश्यक है। छात्रों में भाषा शुद्ध, लिखने, बोलने के कौशल का विकास करती है।
भाषा का शुद्ध रूप पहचानने में छात्रों को सक्षम बनाना ही व्याकरण का मुख्य उद्देश्य है। व्याकरण-शिक्षा से मातृभाषा के प्रयोग-लिखने, बोलने में शुद्धता आती है। मातृभाषा में व्याकरण के उपयोग से शुद्ध एवं स्पषट व्यवहार आता है। शुद्ध सम्प्रेषण व्याकरण के उपयोग पर निर्भर होता है।
भावों की स्पषटता भाषा पर निर्भर है और भाषा की शुद्धता व्याकरण पर। व्याकरण भाषा का संगठन करता है। व्याकरण की जानकारी के बिना भाषा शुद्ध नहीं हो सकती। इसी कारण व्याकरण का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य है।
व्याकरण के प्रकार
आज ज्ञान के क्षेत्र में विस्फोट हो रहा है। समस्त अध्ययन क्षेत्रों में ज्ञान में वृद्धि अधिक तीव्रता से हो रही है। इसका प्रभाव व्याकरण के ज्ञान पर भी हुआ है। भाषा वैज्ञानिक ‘चौमस्की’ में एक नवीन व्याकरण का विकास किया है जिसे’व्यावहारिक व्याकरण’ की संज्ञा दी जाती है इस प्रकार के व्याकरण में नियमों के अनुसरण की अपेक्षा ‘व्यवहारिकता’ अथवा प्रचलन को विशेष महत्व दिया है। व्याकरण के तीन प्रकार है-
- शास्त्रीय या सैद्धान्तिक व्याकरण
- व्यावहारिक व्याकरण
- प्रासंगिक व्याकरण
1. शास्त्रीय या सैद्धांन्तिक व्याकरण
विद्वानों ने वाक्य संरचना, ध्वनि, स्वर आदि के व्याकरण के नियमों एवं सिद्धांतों की रचना की है उनका ज्ञान छात्रों को दिया जाता है। तथा छात्रों को भी अवसर देते है वे भी वाक्य संरचना में उनका प्रयोग करें तथा वाक्य की संरचना में घटकों-कर्ता, क्रिया, कर्म, विशेषण, संज्ञा सर्वनाम,
क्रिया-विशेषण की पहचान करें। व्याकरण के नियमों को विशेष महत्व दिया जाता है। इसमें भाषा की शुद्धता को प्राथमिकता दी जाती हैं
2. प्रासंगिक व्याकरण
इस प्रकार के व्याकरण में शुद्ध स्पष्ट अभिव्यक्ति पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें भाषा की दृष्टि से अशुद्धियाँ रहती है परन्तु अपेक्षाकृत कम रहती है। गद्य साहित्य में कहानीकार अपितु सम्प्रेषण की प्रभावशीलता एवं अभिव्यक्ति पर विशेष ध्यान देते है।
व्याकरण की विभिन्न इकाइयों का अध्ययन
रोचक ढंग से कराने के लिए विभिन्न नए प्रकार के शब्दों का ज्ञान आवश्यक है। साधारणतः यह अत्यंत सरल होते है।
2. संज्ञा व सर्वनाम :- हिन्दी शब्दों की रचना में संज्ञा एवं सर्वनाम को सम्मिलित किया जाता है। किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या भाव का बोध कराने वाले शब्दों को संज्ञा कहते है। और संज्ञा के बदले में आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते है। सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है- ‘सबका नाम’। विद्याथ्र्ाीयों को इसका ज्ञान माध्यमिक कक्षाओं से ही कराया जाता है। इसका विस्तृत वर्णन उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं तक पूर्ण हो जाता है।
3. क्रिया, विशेषण, कारक :- जिन वाक्यों अथवा शब्दों का प्रयोग संज्ञा एवं सर्वनाम के स्ािान पपर किया जाता है उनको क्रिया कहते है। क्रिया संज्ञा एवं सर्वनाम में होने वाले कार्य को स्पषट करने का एक बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। इसके द्वारा कार्य का ज्ञान होता है। क्रिया से बनने वाले वर्णो का ज्ञान छात्रों को कराया जाना चाहिए। किस प्रकार क्रिया से वर्णों की उत्पत्ति की जा सकती है।
4. समास :- समास का अर्थ है – संक्षेपीकण। अर्थात् कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थो का प्रकट करना समास का प्रयोजन है। जब दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने पर, जो नया स्व्तंत्र पद बनता है। तो उस समस्त पद को ‘समास’ कहते है। इसके भी अनेक रूप एवं भेद होते तै। इन सभी का ज्ञान माध्यमिक एव उच्च माध्यमिक स्तर के बालकों कोकराया जाना अत्यंत आवश्यक सिद्ध होता है। समास को हिन्दी भाषा में एक विशिषटता प्रदान की गई। उस विशिषटता से अवगत कराने के लिए इस स्तर के बालकों को मानसिक स्तर अनुकूल होता है।
5. रस, छंद, अलंकार:- रस युक्त वाक्य ही वगव्य है। इरस कविता का महत्वपूर्ण भग होते है। कविता की रचना करते समय कवि रसों का पोषाण अपनी कविता में करते है। इन रसों के कारण ही कविता में छात्र रूचि लेने लगते है। अत: कविता ज्ञान को सुगम बनाने के लिए छात्रों को रसों का ज्ञन कराया जाना अत्यंत आवश्यक होता है।
कविता में प्रयुक्त होने वाले वर्ण, मात्रा, गति यति, चरण आदि के संघटन को छंट कहते है। छन्दों के द्वारा कविता का निर्माण किया जाता है बिहारी तथा अन्य कई कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं में छन्दों एवं दोहो का प्रयोग यिका है। दोहों के विस्तृत स्वरूप को ही छन्द कहा जाता है। यह रसों से पूर्ण होते है और इनको पढने में बहुत आनंद की प्राप्ति होती है। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उच्च एवं माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को छेंद का ज्ञापन कराया जाए। इससे वह सभी प्रकार के दोहों एवं छंदों का अध्ययन करने में सक्षमता प्राप्त कर लेते है।
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक, गुण, धर्म या तत्व को अलंकार कहते है। अलंकार शब्द कदो शब्दों से मिल कर बना है – अलम्कार। अलम् का अर्थ है, भूषिात करना ‘कार’ का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार जो भूषिात करे वह अलंकार कहलाता है। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है- उसी प्रकार जिन उपकरणों से काव्य की सुंदरता मे अभिवृद्धि होती है उसे अलंकार कहते है। इस प्रकार शब्द और अर्थ की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते है।
एक आवश्यक सामग्री है। अत: कविता के सुगम पठन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि छात्रों को अलंकारों का ज्ञान कराया जाए। अलंकारों का अध्ययन करने में छात्रों को कविता में प्रयुक्त होने वाले अलंकारों की जानकारी हो जाती है और वे कविता को समझने में सुगमता अनुभव करते है।
6. पर्यायवाची विलोम शब्द :- ये पर्यायवाची शब्द एक ही अर्थ के घ्ज्ञोतक होते है समान अर्थ वाले इन शब्दों का अर्थ होता है (पर्याय) बदले में आने वाला शब्द, इसे प्रतिशब्द भी कहते है। पर्यायवाची शब्दों के माध्यम से विद्यार्थियों को शब्द का ज्ञान होता है व पर्याय को समझने में सार्थक होते है और धीरे-धीरे अभ्यास के माध्यम से उनके शब्द ज्ञान में वृद्धि होती है।
हिन्दी में विरोधी शब्द के कई पर्याय प्रचलित है जैसे- विलोम,य प्रतिलोम, विरूद्वाथ्र्ाी, निषोधात्मक, विपरीतार्थक आदि, अर्थ के धरातल पर विलोम शब्द ठीक-ठीक विरोधी अर्थ को व्यंजित करते है। विलोम शब्द को लिखना अत्यंत सरल है तथा विद्यार्थियों को समझाना भी सरल है। इससे विद्यार्थियों को शब्द भंडार की ज्ञानात्मक वृद्धि होती है । वह शब्द के प्रयोग को अभ्यास के माध्यम से समझ पाते है।
7. मुहावरे व लोकोक्ति:- मुहावरा ऐसा वाक्यांश है जो सामान्य अर्थ का बोध कराकर किसी विलक्षण (विशेष) अर्थ का बोध कराता है मुहावरे के माध्यम से विद्यार्थियों को भाषा संप्रेषण का ज्ञान होता है उनकी भाषा में सरलता आती है मुहावरे का प्रयोग उनकी भाषा में ज्ञान के स्तर को बढ़ाता है।
लोकोक्ति (कहावत) आने में एक स्वतंत्र अर्थ रखने वाली लोक प्रचलित उक्ति है। जिसका प्रयोग किसी को शिक्षा देने, चेतावनी देने या व्यंग्य करने उलाहना देने के लिए होता है। यह अपनी संक्षिप्त एवं चटपटी शैली में प्रयुक्त होती है। लोकोक्ति हिन्दी भाषा को एक नवीन रूप प्रदान करती है। विद्यार्थियों को रोचक उदाहरण का प्रयोग कर लोकाक्ति का अभ्यास कराया जा सकता है। जिससे उन्हें व्याकरणिक ज्ञान प्राप्त होता है।
- मदन लाल वर्मा- मानक हिन्दी का शिक्षण उपागम एवं उपलब्धियां भाग 1, 2, 3 सम्पादकीय आगरा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान-1999
- हेमा:- भाषा विज्ञान- आगरा राखी प्रकाशन प्रा. लि. आगरा – 1999
- ब्रजेश्वर वर्मा – भाषा शिक्षण तथा भाषा विज्ञान, आगरा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान- 1989