सम+ धि – दो ऐसे शब्द हैं जो संधि बनाते हैं। संधि का मतलब मिलना, हिंदी भाषा में संधि को पूरे शब्दों के साथ नहीं लिखा जाता है। लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम भी नहीं होता है। इसका मुख्य कारण है कि संस्कृत व्याकरण की एक पुरानी परंपरा है। जिसके लिए व्याकरण को पढ़ना जरूरी है। शब्द रचना के समय संधियां काम आती है। आप इस ब्लॉग में sandhi viched के बारे में विस्तार से जानेंगे।
संधि विच्छेद
संधि में पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद है . जैसे – धनादेश = धन + आदेश .
संधि के प्रकार
Sandhi Viched में संधि के तीन प्रकार होते हैं
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि
जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है वह स्वर संधि कहलाता है। हिंदी संख्या में 11 स्वर होती है, बाकी के अक्षर व्यंजन के होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उसमें से जो तीसरा स्वर बनता है वह स्वर संधि कहलाता है।
उदाहरण: विद्या+आलय -विद्यालय
स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- गुण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि
दीर्घ संधि में दो स्वर्ण या सजातीय स्वरों के बीच संधि होकर उनके दीर्घ रूप हो जाते है। अर्थात दो स्वर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं।
- जब अ,आ के साथ अ,आ हो तो “आ”बनता है
- जब इ,ई के साथ इ,ई हो तो “ई” बनता है
- जब उ,ऊ के साथ उ,ऊ हो तो “ऊ”बनता है
उदाहरण
- पुस्तक +आलय- पुस्तकालय
- विद्या+अर्थी-विद्यार्थी
- भानु+उदय-भानूदय
गुण संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ/ई आए तो ‘ए’ ; ऊ/ऊ आए तो ‘ओ’ और ‘ऋ’ आए तो ‘अर’ हो जाता है |
- जब अ,आ के साथ इ,ई हो तो “ए” बनता है
- जब अ,आ के साथ उ,ऊ हो तो “ओ” बनता है
- जब अ,आ के साथ ऋ हो तो” अर” बनता है
उदाहरण
- नर+इंद्र-नरेंद्र
- ज्ञान+उपदेश-ज्ञानोपदेश
- देव+ऋषि-देवर्षि
वृद्धि संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ए/ऐ रहे तो ‘ऐ’ और ओ/औ रहे तो ‘औ’ बन जाता है।
- जब अ,आ के साथ ए,ऐ हो तो “ऐ” बनता है
- जब अ,आ के साथ ओ,औ हो तो ” औ” बनता है
उदाहरण:
- मत+एकता-मतैकता
- सदा+एव- सदैव
- महा+ओज – महौज
यण संधि
यदि इ/ई, उ/ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’ उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है।
- जब इ,ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ” य” बन जाता है
- जब उ,ऊ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो” व॒” बन जाता है
- जब ऋ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो” र ” बन जाता है
ऊपर दिए गए सभी यण संधि कहलाते हैं। संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त पद होते हैं।
- य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए
- व से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए
- त्र शब्द होना चाहिए
उदाहरण:
- इती+ आदि- इत्यादि
- अनु+अय- अनवय
- सु+ आगत- स्वागत
अयादि संधि
यदि ए, ऐ, ओं और औ के बाद भिन्न स्वर आये तो ‘ए’ का अय ‘ऐ’ का आय, ‘ओ’ का अव और ‘औ’ का आव हो जाता है। अय, आय, अव और आव के य और व आगे वाले भिन्न स्वर से मिल जाते है |
- जब ए,ऐ,ओ,औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ” ए- अय “, ” ऐ- आय”, “ओ- अव ” , “औ- आव” मैं हो जाता है
- य, वह से पहले व्यंजन पर अ,आ की मात्रा हो तो वह अयादि संधि हो सकती है परंतु अगर कोई विच्छेद ना निकलता हो तो के + बाद आने वाले भाग को वैसा ही लिखना होगा अयादि संधि कहलाता है।
उदाहरण
- ने+अन- नयन
- नौ+ इक- नाविक
- भो+अन- भवन
संधि के उदाहरण (Sandhi Ke Udaharan)
दीर्घ संधि के उदाहरण:
- स्वाधीन = स्व + आधीन ( दीर्घ संधि )
- पुस्तकालय = पुस्तक + आलय ( दीर्घ संधि )
- प्रधानाध्यापक = प्रधान + अध्यापक ( दीर्घ संधि )
- स्वाध्याय = स्व + अध्याय ( दीर्घ संधि )
- सर्वाधिक = सर्व + अधिक ( दीर्घ संधि )
- योजनावधि = योजन + अवधि ( दीर्घ संधि )
- विद्यालय = विद्या + आलय ( दीर्घ संधि )
- अंडाकार = अंड + आकार ( दीर्घ संधि )
- अनुपमेय = = अनु + उपमेय ( दीर्घ संधि )
- अधीश = अधि + ईश (दीर्घ संधि )
- अधिकांश = अधिक + अंश ( दीर्घ संधि )
- आत्मावलंबन = आत्मा + अवलम्बन ( दीर्घ संधि )
-
कुर्मावतार = कूर्म + अवतार (दीर्घ स्वर संधि )
-
नागाधिराज = नाग + अधिराज (दीर्घ स्वर संधि )
-
अनावृष्टि = अन + आवृष्टि (दीर्घ स्वर संधि )
-
पीताम्बर = पीत + अम्बर (दीर्घ स्वर संधि )
-
मतानुसार = मत + अनुसार (दीर्घ स्वर संधि )
-
युगानुसार = युग + अनुसार (दीर्घ स्वर संधि )
-
व्ययामादी = व्यायाम + आदि (दीर्घ स्वर संधि )
-
सत्याग्रही = सत्य + आग्रही (दीर्घ स्वर संधि )
-
समांनातर = समान + अंतर (दीर्घ स्वर संधि )
-
स्वाभिमानी = स्व + अभिमानी (दीर्घ स्वर संधि )
-
गुरुत्वाकर्षण = गुरुत्व + आकर्षण (दीर्घ स्वर संधि )
-
हिमांचल = हिम + अंचल (दीर्घ स्वर संधि )
-
हिमालय = हिम + आलय (दीर्घ स्वर संधि )
-
अश्वारोही = अश्व + आरोही (दीर्घ स्वर संधि )
-
क्रोधाग्नि = क्रोध + अग्नि (दीर्घ स्वर संधि )
-
अखिलेश = अखिल + ईश (दीर्घ स्वर संधि )
-
परोपकार = पर + उपकार (दीर्घ स्वर संधि )
-
महर्षि = महा + ऋषि (दीर्घ स्वर संधि )
-
महोत्सव = महा + उत्सव (दीर्घ स्वर संधि )
-
यथोचित = यथा + उचित (दीर्घ स्वर संधि )
गुण संधि के उदाहरण:
- अन्योक्ति = अन्य + उक्ति (गुण संधि )
- आत्मोसर्ग = आत्म + उत्सर्ग ( गुण संधि )
-
इत्यादि = इति + आदि ( गुण संधि )
-
परोपकार = पर + उपकार ( गुण संधि )
यण संधि के उदाहरण:
- अनुयय = अनु + अय (यण संधि )
- अन्वेषण = अनु + एषण (यण संधि )
- अन्वित = अनु + इत ( यण संधि )
- अध्याय = अधि + आय ( यण संधि )
- अध्ययन = अधि + अयन ( यण संधि )
- अभ्यस्त = अभि + अस्त ( यण संधि )
- इत्यादि = इति + आदि (यण संधि )
- आध्यात्मिक= आधि + आत्मिक (यण संधि)
- अत्यधिक = अति + अधिक (यण संधि )
- अत्यावश्यक = अति + आवश्यक (यण संधि )
विसर्ग संधि के उदाहरण:
- अन्तकरण = अंत + करण ( विसर्ग संधि )
- अंतपुर = अंत : + पुर (विसर्ग संधि )
- अन्तर्निहित = अंत: + निहित (विसर्ग संधि )
- अंतर्गत = अंत: + गत ( विसर्ग संधि )
- अंतर्ध्यान = अंत : + ध्यान (विसर्ग संधि )
- अंतर्राष्ट्रीय = अन्तः + राष्ट्रीय ( विसर्ग संधि )
- अधोगति = अध : + गति ( विसर्ग संधि )
- अहोरूप = अह : + रूप ( विसर्ग संधि )
- अविष्कार = आवि : + कार ( विसर्ग संधि )
व्यंजन संधि के उदाहरण:
- अनायास = अनु + आयास ( व्यंजन संधि )
- अनूप = अनू + ऊप ( व्यंजन संधि )
- अनंग = अन + अंग ( व्यंजन संधि )
- अजन्त = अच् + अंत (व्यंजन संधि )
- अब्ज = अप + ज ( व्यंजन संधि )
- आकृष्ट = आकृष + त (व्यंजन संधि )
संधि के अन्य उदाहरण
भावुक = भौ + उक (अयादि संधि)
भास्कर = भा: + कर (विसर्ग संधि )
भानूदय = भानु + उदय (दीर्घ संधि )
भावोन्मेष = भाव + उदय ( गुण संधि )
भिन्न = भिद + न ( व्यंजन संधि )
भूर्जित = भू + उर्जित (दीर्घ संधि )
भूदार = भू + उदार ( दीर्घ संधि )
भूषण = भूष + अन ( व्यंजन संधि )
भगवतभक्ति = भगवत + भक्ति ( व्यंजन संधि )
मतैक्य = मत + एक्य ( वृद्धि संधि )
मनस्पात = मन : + ताप (विसर्ग संधि )
मनोहर = मन : + हर (विसर्ग संधि )
मनोयोग = मन : + योग (विसर्ग संधि )
मनोरथ = मन : + रथ (विसर्ग संधि )
मनोविकार = मन : + विकार ( विसर्ग संधि )
महत्व = महत + त्व ( व्यंजन संधि )
महालाभ = महान + लाभ (व्यंजन संधि )
महिष = महि + ईश ( गुण संधि )
मायाधीन = माया + अधीन ( दीर्घ संधि )
महामात्य = महा + अमात्य (दीर्घ संधि )
यज्ञ = यज + न ( व्यंजन संधि )
अंतर्गत = अंत + गत ( विसर्ग संधि )
सर्वोदय = सर्व + उदय ( गुण स्वर संधि )
वसंतोत्सव = वसंत + उत्सव स्वर संधि
निस्सार = नि: + सार (विसर्ग संधि )
सहानुभूति = सह + अनुभूति ( दीर्घ स्वर संधि
ग्रामोत्थान = ग्राम + उत्थान ( गुण स्वर संधि )
दुसाहस = दु:+ साहस ( विसर्ग संधि)
अत्यधिक = अति + अधिक ( स्वर संधि )
निम्नाकित = निम्न + अंकित ( दीर्घ संधि )
निर्दोष = नि : + दोष ( विसर्ग संधि )
दोषारोपण = दोष + आरोपण ( दीर्घ स्वर संधि )
विद्यालय = विद्या + आलय ( दीर्घ संधि )
सदैव = सदा + एव ( वृद्धि स्वर संधि )
वृहदाकार = वृहत + आकार ( व्यंजन संधि )
परामत्मा = परम + आत्मा ( दीर्घ स्वर संधि )
अश्वारोहण = अश्व + आरोहण ( दीर्घ + sस्वर संधि )
आत्मोत्सर्ग = आत्म + उत्सर्ग ( गुण स्वर संधि )
मनोयोग = मन : + योग ( विसर्ग संधि )
मदांध = मद + अंध ( दीर्घ स्वर संधि )
जगदाधार = जगत + आधार ( व्यंजन संधि )
भुवनेश = भुवन + ईश (गुण स्वर संधि )
लाभान्वित = लाभ + अन्वित ( दीर्घ स्वर संधि )
हिमाच्छादित = हिम + आच्छादित ( दीर्घ स्वर संधि )
मदांध = मद + अंध (दीर्घ स्वर संधि )
जीर्णोद्धार = जीर्ण + उद्धार ( गुण स्वर संधि )
निबुद्धि = नि : + बुद्धि ( गुण स्वर संधि (
अत्यंत = अति + अंत (यण स्वर संधि )
निष्कटक = नि : कंटक (विसर्ग संधि)
नदीश = नदी = नदी + ईश (विसर्ग संधि)
आद्यापि = अद्य + अपि (गुण स्वर संधि )
ततैव = तव + एव ( वृद्धि स्वर संधि )
स्वागत = सु + आगत (स्वर संधि )
स्वाभिमान = स्व + अभिमान (स्वर संधि )
अत्यंत = अति + अंत (स्वर संधि )
पावक = पौ + अक (स्वर संधि )
निर्धन = नि : + धन ( विसर्ग संधि )
निश्चल = नि : + छल ( विसर्ग संधि )
संकीर्ण = सम + कीर्ण ( व्यंजन संधि )
पराधीनता = पर + अधीनता ( स्वर संधि )
निश्चय = नि : + चय (विसर्ग संधि )
सारांश = सार + अंश ( स्वर संधि )
पदारूढ़ = पद + आरूढ़ ( स्वर संधि )
पवन = पो + अन ( स्वर संधि )
इत्यादि = इति + आदि ( स्वर संधि )
निर्जीव = नि : + जीव ( विसर्ग संधि )
निर्भय = नि : + भय ( विसर्ग संधि )
मध्यान्ह = मध्य + याह ( स्वर संधि )
उद्दाम = उत + दाम ( व्यंजन संधि )
संसार = सम + सार ( व्यंजन संधि )
प्रत्यक्ष = प्रति + अक्ष (स्वर संधि )
सम्बन्ध = सम + बंध ( व्यंजन संधि )
अत्याचार = अति + आचार ( स्वर संधि )
अन्याय = अन + न्याय ( स्वर संधि )
अभ्युदय = अभि + उदय ( स्वर संधि )
पुरषोत्तम = पुरुष + उत्तम ( स्वर संधि )
भगवत भक्त = भगवत + भक्त ( व्यंजन संधि )
अंतर्गत = अंत + गत ( विसर्ग संधि )
संतुष्ट = सम + तुष्ट ( व्यंजन संधि )
उत्कृष्ट = उतकृष + त ( व्यंजन संधि )
सन्यास = सन + न्याय ( व्यंजन संधि )
मनोवृति = मन : + वृति ( विसर्ग संधि )
तिरस्कार = तिर : + कार ( विसर्ग संधि )
यद्दपि = यदि + अपि ( स्वर संधि )
रसात्मक = रस + आत्मक ( स्वर संधि )
धिग्दंड = धिक् + दंड ( व्यंजन संधि )
अन्वेषण = अनु + एशण ( व्यंजन संधि )
उलंघन = उत + लंघन ( व्यंजन संधि )
सत्यस्वरूप = सत + स्वरूप ( व्यंजन संधि )
मनोहर = मन : + हर ( विसर्ग संधि )
दुष्परिणाम = दु: + परिणाम ( विसर्ग संधि )
गवेषणा = गम + एषण ( स्वर संधि )
वसंतागमन = वसंत + आगमन ( स्वर संधि )
निर्दलित = नि : + दलित ( विसर्ग संधि )
राजोद्यान = राजा + उद्यान ( विसर्ग संधि )
अंतरपथ = अंत : + पथ (विसर्ग संधि )
उल्लास = उत + लास (व्यंजन संधि )
दिगंबर = दिक् + अम्बर (व्यंजन संधि )
अनासक्ति = अन + आसक्ति ( व्यंजन संधि )
निर्धूम = नि :धूम ( विसर्ग संधि )
गण्डस्थल = गण्ड: + स्थल (विसर्ग संधि )
यद्पि = यदि + अपि (स्वर संधि )
निर्धात = नि : + घात (विसर्ग संधि )
कालाग्नि = काल+ अग्नि (स्वर संधि )
रविंद्र = रवि + इंद्र (स्वर संधि )
रामायण = राम + आयन ( स्वर संधि )
अमरासन = अमर + आसन (स्वर संधि )
मृण्मय = मृत + मय ( व्यंजन संधि )
उन्मुक्त = उत + मुक्त (व्यंजन संधि )
शरदचंद्र = शरत + चंद्र ( व्यंजन संधि )
वनस्थली = वन : + थली (विसर्ग संधि )
दुरंत = दु : + अंत ( विसर्ग संधि )
निरंतर = नि : + अंतर (विसर्ग संधि )
सदैव = सदा + एव ( स्वर संधि )
वहिर्मुख = वहि : + मुख ( विसर्ग संधि )
अत्यंत = अति + अंत (स्वर संधि )
अश्वारोही = अश्व + आरोही (स्वर संधि )
अधिकांश = अधिक + अंश ( स्वर संधि )
स्वागतार्थ = सु + आगत + अर्थ ( स्वर संधि )
परंपरागत = परंपरा + आगत ( स्वर संधि )
उन्मत्त = उत + मत्त ( व्यंजन संधि )
उल्लास = उत + लास ( व्यंजन संधि )
निर्वासित = नि : + वासित ( विसर्ग संधि )
निस्पंद = नि : + पंद ( विसर्ग संधि )
नियमानुसार = नियम + अनुसार ( स्वर संधि )
नवागत = नव + आगत ( स्वर संधि )
नरेश = नर + ईश (स्वर संधि )
स्वागत = सु + आगत (स्वर संधि )
महोत्सव = महा + उत्सव ( स्वर संधि )
प्रत्यक्ष = प्रति + अक्ष ( स्वर संधि )
उद्दाम = उत + दाम (व्यंजन संधि )
निराश = नि : आश (विसर्ग संधि )
पुरस्कार = पुर :+ कार ( विसर्ग संधि )
निराशा = नि :+ आशा (विसर्ग संधि )
परमात्मा = परम + आत्मा ( स्वर संधि )
निरोग = नि : + रोग ( विसर्ग संधि )
निरर्थक = नि : + अर्थक ( विसर्ग संधि )
विनयावत = विनय + अनवत ( व्यंजन संधि )
उद्दत = उत + हत (व्यंजन संधि )
अनायास = अन + आयास ( स्वर संधि )
सूर्योदय = सूर्य + उदय (स्वर संधि )
अंतरंग = अंत : + अंग ( विसर्ग संधि )
प्रतीक्षा = प्रति + इक्षा ( स्वर संधि )
त्रिपुरारी = त्रिपुर + अरि ( स्वर संधि )
यद्दपि = यदि + अपि ( स्वर संधि )
दिगंबर = दिक् + अम्बर ( व्यंजन संधि )
निरगुन = नि : + गुण ( विसर्ग संधि )
परमार्थ = परम + अर्थ ( स्वर संधि )
पावक = पौ + अक (स्वर संधि )
अमरासन = अमर + आसन (स्वर संधि )
उज्जवल = उत + ज्वल (व्यंजन संधि )
सन्देश = सम + देश (व्यंजन संधि )
ज्योतिवाह = ज्योति :+ वाह (विसर्ग संधि )
उन्मुक्त = उत + मुक्त (व्यंजन संधि )
अंतरपथ = अंत :+ पथ (विसर्ग संधि )
निश्चय = नि :+ चय (विसर्ग संधि )
स्वर्ग = स्व :+ ग (विसर्ग संधि )
निष्फलता = नि :+ फलता (विसर्ग संधि )
सन्यास = सम + न्यास (व्यंजन संधि )
उन्मद = उत + मद (व्यंजन संधि )
दुर्लभ = दु :+ लभ (विसर्ग संधि )
दुष्कांड = दु :+ काण्ड (विसर्ग संधि )
अत्याचारी = अति + आचारी (स्वर संधि )
नराधम = नर + अधम (स्वर संधि )
तुरंत = दु : + अंत (विसर्ग संधि )
यद्यपि = यदि + अपि (स्वर संधि )
गवेषणा = गो + एषणा (व्यंजन संधि )
उन्मत्त = उत + मत्त (व्यंजन संधि )
अश्वारोही = अश्व + आरोही (स्वर संधि )
रामायण = राम + अयन (स्वर संधि )
अत्याचार = अति + आचार ( स्वर संधि )
समुन्न्नत = सम + उन्नत (स्वर संधि )
शरतचंद्र = शरत + चंद्र (व्यंजन संधि )
महोत्सव = महा + उत्सव (व्यंजन संधि )
नमस्ते = नम: + ते (विसर्ग संधि )
निर्धन = नि: + धन (विसर्ग संधि )
अन्वेषण = अनु + एषण (यण संधि )
संरक्षक = सम + रक्षक (व्यंजन संधि )
अमरासन = अमर + आसन (स्वर संधि )
दिगंबर = दिक् + अम्बर (व्यंजन संधि )
धिग्दन्ड = धिक् + दंड (व्यंजन संधि )
प्रलयोल्का = प्रलय + उल्का (स्वर संधि )
व्यंजन संधि
व्यंजन वर्ण के साथ स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण अथवा स्वर वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन हो, उसे ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं।
उदाहरण
- दिक+अंबर-दिगंबर
- अभी+सेक- अभिषेक
Sandhi Viched: व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं
1. जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क,च,ट,तो,पर का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे से य ,र, ल ,व ,ह से हो या किसी स्वर के साथ हो जाए तो क को ग, च को ज, ट को ड , त को द , प को ब में बदल दिया जाता है।
उदाहरण
क को ग में बदलना
- दिक + अंबर- दिगंबर
- वाक+ ईश- वागीश
च को ज में बदलना
- षट+ आनन – षडानन
- षट+ यंत्र- षड्यंत्र
- षट+अंग- षडंग
त को द में बदलना
- तत+ उपरांत-तदुपरांत
- उत+ घाटन- उद्घाटन
- जगत+ अंबा- जगदंबा
प को ब में बदलना
- अप+ द- अब्द
- अप+ ज – अब्ज
2. यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण का मिलन न या म वर्ण के साथ हो तो वह नीचे गए उदाहरण में बदल जाता है।
उदहारण
क् को ङ् में बदलना
- वाक् + मय = वाङ्मय
- दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
ट् को ण् में बदलना
- षट् + मास = षण्मास
- षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
त् को न् में बदलना
- उत् + नति = उन्नति
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
प् को म् में बदलना
- अप् + मय = अम्मय
3. जब त का मिलन ग,घ, द ,ध, प, म, य ,र , या किसी स्वर से हो तो द बन जाता है।और अगर म के साथ क से म तक कि किसी भी वर्ण के मिलन पर म की जगह पर मिलन वाले वर्ण बन जाता है।
उदहारण
म् + क ख ग घ ङ :-
- सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
- सम् + ख्या = संख्या
म् + च, छ, ज, झ, ञ
- सम् + चय = संचय
- किम् + चित् = किंचित
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण
- दम् + ड = दण्ड/दंड
- खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न
- सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
- किम् + नर = किन्नर
म् + प, फ, ब, भ, म
- सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
- सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व्
- सत् + भावना = सद्भावना
- जगत् + ईश =जगदीश
4. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- त् से परे च् या छ् होने पर च,
- ज् या झ् होने पर ज्,
- ट् या ठ् होने पर ट्,
- ड् या ढ् होने पर ड्
- ल होने पर ल्
- म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।
उदहारण
म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह
- सम् + रचना = संरचना
- सम् + लग्न = संलग्न
त् + च , ज , झ , ट , ड , ल –
- उत् + चारण = उच्चारण
- सत् + जन = सज्जन
5. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल जाता है।
- जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है।
उदहारण
- उत् + चारण = उच्चारण
- शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
त् + श्
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
6. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल जाता है।
- त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है।
उदहारण
- सत् + जन = सज्जन
- जगत् + जीवन = जगज्जीवन
त् + ह
- उत् + हार = उद्धार
- उत् + हरण =उद्धरण
7. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बदल जाता है।
- त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की पर ट् बन जाता है।
- जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की पर‘ड्’बन जाता है।
उदहारण
- तत् + टीका = तट्टीका
- वृहत् + टीका = वृहट्टीका
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- आ + छादन =आच्छादन
8. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।
- त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है।
उदहारण
- उत् + लास = उल्लास
- तत् + लीन = तल्लीन
म् + च् , क, त, ब , प
- किम् + चित = किंचित
- किम् + कर = किंक
9. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है।
- त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द्
- ह की जगह पर ध बन जाता है।
उदहारण
- उत् + हार = उद्धार/उद्धार
- उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
म् + म
- सम् + मति = सम्मति
- सम् + मान = सम्मान
10. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।
- ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है।
उदहारण
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शृंखल = उच्छृंखल
म् + य, र, व्,श, ल, स,
- सम् + योग = संयोग
- सम् + रक्षण = संरक्षण
11. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है।
- चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।
- किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है।
उदहारण
- आ + छादन = आच्छादन
- अनु + छेद = अनुच्छेद
र् + न, म –
- परि + नाम = परिणाम
- प्र + मान = प्रमाण
12. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है।
उदहारण
- वि + सम = विषम
- अभि + सिक्त = अभिषिक्त
भ् + स् के उदहारण :-
- अभि + सेक = अभिषे
- नि + सिद्ध = निषिद्ध
13. नीचे दिए गए वर्ण पर ध्यान दीजिए
- यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है।
- जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है।
उदहारण
- राम + अयन = रामायण
- परि + नाम = परिणाम
व्यंजन संधि पहचानने की ट्रिक
नियमः जब क् के पीछे ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ, य, र, ल, व अथवा कोई स्वर हो तो प्रायः क् के स्थान में म् हो जायेगा।
उदाहरणः दिक्+गज अर्थात दिग्गज धिक्+याचना अर्थात धिग्याचना दिक्+दर्शन अर्थात दिग्दर्शन धिक्+जड अर्थात धिग्जड दिक्+अंबर अर्थात दिगम्बर वाक्+इश अर्थात वागीश।
विसर्ग संधि
जब विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन आ जाए तब जो परिवर्तन होता है ,वह विसर्ग संधि कहलाता है।
उदाहरण
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- नि: + पाप =निष्पाप
विसर्ग संधि पहचानने की ट्रिक
नियमः जब इ या उ युक्त अक्षर के सामने विसर्ग और हो उसके पीछे क, ख या प, फ आये तो विसर्ग ष् में बदल जाता है।
उदाहरणः निः+कृति अर्थात निष्कृति निः+खलु अर्थात निष्खलु निः+फल अर्थात निष्फल।
Sandhi Viched: विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं
Sandhi Viched: विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं, जिनके बारे में नीचे दिया गया है:
- विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है।
- विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।
उदहारण
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
- अधः + गति = अधोगति
विच्छेद
- तपश्चर्या = तपः + चर्या
- अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
- विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।
- विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।
उदाहरण
- दुः + शासन = दुश्शासन
- यशः + शरीर = यशश्शरीर
विच्छेद
- निश्श्वास = निः + श्वास
- चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
- विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है।
- विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।
उदाहरण
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
- चतुः + टीका = चतुष्टीका
- विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है।
- यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।
उदाहरण
- निः + कलंक = निष्कलंक
- दुः + कर = दुष्कर
विच्छेद
- निष्काम = निः + काम
- निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
- विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है।
- यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।
उदाहरण
- अधः + पतन = अध: पतन
- प्रातः + काल = प्रात: काल
विच्छेद
- रज: कण = रज: + कण
- तप: पूत = तप: + पूत
अपवाद
- भा: + कर = भास्कर
- बृह: + पति = बृहस्पति
- विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
- विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
उदाहरण
- अन्त: + तल = अन्तस्तल
- नि: + ताप = निस्ताप
विच्छेद
- निस्तेज = निः + तेज
- बहिस्थल = बहि: + थल
- विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता।
- विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
उदाहरण
- नि: + सन्देह = निस्सन्देह
- दु: + साहस = दुस्साहस
विच्छेद
- निस्संतान = नि: + संतान
- मनस्संताप = मन: + संताप
- यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।
उदाहरण
- नि: + रस = नीरस
- नि: + रव = नीरव
विच्छेद
- नीरज = नि: + रज
- नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
- विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।
उदाहरण
- अत: + एव = अतएव
- पय: + आदि = पयआदि
- विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।
उदाहरण
- सर: + ज = सरोज
- अध: + भाग = अधोभाग
विच्छेद
- मनोहर = मन: + हर
- अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
अपवाद
- पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
- अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
हिंदी की स्वतंत्र संधियाँ
उपर्युक्त तीनों संधियाँ संस्कृत से हिंदी में ली गई हैं। हिंदी की निम्नलिखित छः प्रवृतियोवाली संधियाँ होती हैं-
- महाप्राणीकरण
- घोषीकरण
- हस्वीकरण
- आगम
- व्यंजन लोपीकरण और
- स्वर व्यंजन लोपीकरण
इसे विस्तार से इस प्रकार समझा जा सकता है-
1 – पूर्ण स्वर लोप
दो स्वरों के मिलने पर पूर्ण स्वर का लोप हो जाता है |
इसके भी दो प्रकार है-
1 – अविकारी पूर्णस्वर लोप : जैसे – मिल + अन = मिलन
लोप
छल + आवा = छलावा
2 – विकारी पूर्णस्वर लोप : जैसे – भूल + आवा = भुलावा
लूट + एरा = लुटेरा
लात + ईयल = लटियल
2 – हस्वकारी स्वर संधि
दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड का अंतिम स्वर हस्व हो जाता है।
1 – अविकारी हस्वकारी :
जैसे – साधु + ओं = साधुओं
डाकू + ओं = डाकुओं
2 – विकारी हस्वकारी :
जैसे – साधु + अक्कडी = सधुक्कडी
बाबू + आ = बबुआ
3 – आगम स्वर संधि
इसकी दो स्थितियाँ है –
1 – अविकारी आगम स्वर : इसका अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं होता |
जैसे – तिथि + आँ = तिथियाँ
शक्ति + ओं = शक्तियों
2 – विकारी आगम स्वर : इसका अंतिम स्वर विकृत हो जाता है|
जैसे – नदी + आँ = नदियाँ
लड़की + आँ = लड़कियाँ
4 – पूर्णस्वर लोपी व्यंजन संधि
इसमें प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाता है |
जैसे – तुम + ही = तुम्हीं
उन + ही = उन्हीं
5 – स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि
इसमें प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है |
जैसे – कुछ + ही = कुछी
इस + ही = इसी
6 – मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि
इसमें प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है|
जैसे – वह + ही = वही
यह + ही = यही
7 – पूर्ण स्वर हस्वकारी व्यंजन संधि
इसमें प्रथम खंड का प्रथम वर्ण हस्व हो जाता है |
जैसे – अकन + कटा = कनकटा
पानी + घाट = पनघट पनिघट
8 – महाप्राणीकरण व्यंजन संधि
यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ‘ब’ हो तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ हो तो ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है |
जैसे – अब + ही = कभी
कब + ही = कभी
सब + ही = सभी
9 – सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि
इसमें प्रथम खंड के अनुनासिक सब्जयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है|
जैसे – जहाँ + ही = जहीं
कहाँ + ही = कहीं
वहाँ + ही = वहीं
10 – आकारागम व्यंजन संधि
इसमें संधि करने पर बीच में आकार का आगम हो जाता है|
जैसे – सत्य + नाश = सत्यानाश
मूसल + धार = मूसलाधार
FAQs
चित्रोपम में कौन सी संधि है ?
चित्रोपम में गुण संधि है क्योंकि इसका Sandhi Viched चित्र + उपम है।
विच्छेद में कौन सी संधि है?
व्यंजन संधि
शब्दार्थ का संधि विच्छेद क्या होगा?
शब्द + अर्थ
संधि कितने प्रकार की होती है?
संधि के तीन प्रकार होते हैं
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि
स्वर संधि के कितने भेद होते है?
स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. गुण संधि
5. अयादि संधि
मनोनुकूल का संधि विच्छेद क्या है?
मनः + अनुकूल
आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग से Sandhi Viched के बारे में जानकारी प्राप्त हुई होगी। ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण और रोचक ब्लॉग पढ़ने के लिए इंडियन विकिपिडिया के साथ बने रहिए।