सबसे पहले वे ’भारत टाकीज’ गए। हाउस फुल हो चुका था, ब्लैक में भी टिकट नहीं मिल रही है। वे स्कूटर पर बैठे और ’रंग महल’ की तरफ आए लेकिन वहाँ वे निश्चित नहीं कर सके कि फिल्म कैसी होगी ? अभी समय था वे तीसरी टाकीज की तरफ गए और टिकट खरीदकर बैठ गए। मजा नहीं आ रहा था । बोर फिल्म थी। वे बाहर आ गए। सोचा कि कहीं सेकंड शो देखेंगे। वे ’कल्पना’ की ओर गए, फिर वहाँ से ’कृष्णा’ की ओर।
उपदेश : उचित आदर्श एवं मार्गदर्शन के अभाव में नई पीढ़ी भटक रही है। साथ ही एक बात और है- अवसर की कमी।