शिक्षा के पावन आंदोलन से राष्ट्र का भविष्य निर्मित होता है. शिक्षक की भूमिका ऐसे में नितांत आवश्यक हो जाता है. शिक्षा समाज का दर्पण है और ये दर्पण पे जमी धुल को शिक्षक ही अपने तेज से साफ़ कर सकता है. महज बेतन भोगी एवं सरकारी मुलाजिम मात्र नहीं होता शिक्षक, वो तो संभावनाओं का द्रष्टा होता है. समसामयिक परिस्थितियों में शिक्षक की भूमिका शासक के समक्ष गौण होता जा रहा है. शास्त्र की शक्ति शस्त्र के सामने कहीं घुटने न टेक दे और कहीं शाषण के हाँथों शोषित न हो ये उत्तरदायित्व समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के कंधे है. शिक्षक वो धुरी है जिसपे विकास का पहिया घूमता है. शिक्षक अज्ञान के तिमिर को ज्ञान के रौशनी में परिवर्तित करता है. भारत के शिक्षक विश्व भर में ज्ञान के सागर को शोध रहे हैं आज के दिन उन सभी गुरु के लिए दंडवत प्रणाम. ज्ञान की ज्योति के दूत को मेरा कोटि कोटि अभिवादन शिक्षक दिवस पर समर्पित भावाभिव्यक्ति
हर चंद्रगुप्त को
मिलता कहाँ चाणक्य
कहाँ कोई धमनियों
को है बज्र बनाता
कौन द्रष्टा हैं यहाँ
ज्ञान के बाज़ार में
जो वर्तमान में विष्णुगुप्त बन आता
राष्ट्र है तभी तो, होगा राष्ट्रवाद
कौन ऐसा है गुरु , जो ये बात समझाता
विखंडीत नहीं देश मतभेद अनुचित
ये बात जो मनस में राजनेता के लाता
देश बाट जोहता कोई चाणक्य तो आये
उन्नत ललाट पर तिलक लगा जाए …………..