संस्कृत में समस्त सृष्टि का ज्ञान

संस्कृत में समस्त सृष्टि का ज्ञान 

संस्कृत नहीं है मृत भाषा,
संस्कृत है ज्ञान, अमृत पान,
संस्कृत बताती हम क्या थे,
क्या हो गए,क्या होना है बांकी?
संस्कृत नहीं मिथक, है सत्य, 
सार्वकालिक, सनातन अभिव्यक्ति,
संस्कृत है श्रुति-स्मृति,वेद,पुराण
संस्कृत

संस्कृत है मनुष्य की पहचान!
संस्कृत है बुद्ध की पाली,
संस्कृत है विश्व का प्रथम उद्घोष,
संस्कृत है प्राकृत और अपभ्रंश भी
संस्कृत है ज्ञान, ग्रंथ, अलंकरण भी
कवि की प्रेरणा, पूंजी, परमेश्वरी!
संस्कृत है राम का अयण, कृष्ण की गीता,
विश्वभर के कविगुरु की गीतांजलि,
वंकिम चन्द्र की वंदेमातरम की बोली,
संस्कृत है विश्व की आद्यवाणी,
मनुष्यता का पहला उद्घोष ऋग्वेद,
मनुज का पहला सामगान,गद्य छंद, 
अथर्ववेद जादूटोना, रहस्य रोमांच, 
आयुर्वेद,ज्ञान-विज्ञान,ब्रह्मविद्या,
संस्कृत है सर्वाधिक प्राचीन, 
अलौकिक नहीं लौकिक जनवाणी,
संस्कृत नहीं आकाशीय आकाशवाणी
वेद नहीं देवदूत का पैगाम,वेद ऋषियों की वाणी
संस्कृत है मनुष्य की साधना, संस्कृति
संपूर्ण वांग्मय,ना ही कोई वांग,ना स्वांग 
वेद, उपनिषद पुराण है पूरी तरह तार्किक
मनुष्य की तपस्या, ज्ञान का परिणाम,
जितना प्राचीन उतना ही आधुनिक नवीन
आद्य कवि वाल्मीकि से सद्य कवि कबीर
वेदवाणी व्यास से लेकर आधुनिक हुंकार 
दिनकर में संस्कृत की झंकार है 
एक जैसी स्वत:उद्धरित,स्वत:सुधरित,
स्वत: प्रासंगिक समस्त सृष्टि का ज्ञान!



-विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101

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