सारा आकाश उपन्यास का शिरीष

सारा आकाश उपन्यास के आधार पर शिरीष का चरित्र चित्रण 

शिरीष सारा आकाश उपन्यास का प्रमुख पात्र है .इसकी प्रमुखता इस दृष्टि से नहीं है कि वह घटनाओ का संचालक है .वास्तव में शिरीष का उपन्यास में समावेश विशेष दृष्टिकोण से हुआ है .प्रत्येक रचनाकार किसी न किसी प्रकार से अपनी जीवन दृष्टि को रचना में व्यक्त करता है . इसके लिए वह अपने आप को किसी पात्र के माध्यम से प्रस्तुत करता है .राजेन्द्र यादव ने अपने जीवन दर्शन को वाणी देने के लिए जिस पात्र का सृजन किया है वह पात्र है शिरीष .
सारा आकाश
सारा आकाश 
शिरीष एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क है .यद्यपि वह डेढ़ सौ रूपए वेतन वाले बाबू हैं तथापि उनमे बौद्धिकता है .समर हो या कोई और जो भी उसके संपर्क में आता है उससे प्रभावित हो जाता है . वह महीन मखमल का कुरता और पायजामा पहनता है. शिरीष अत्यंत व्यवहार कुशल है .वह युवक होकर भी यथार्थवाद विश्लेषण करता और अपना निष्कर्ष प्रस्तुत करता है .
संक्षेप में शिरीष के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं दिखाई देती है :-

१.विचारक :- 

शिरीष प्रत्येक विषय पर विचार करता है और निष्कर्ष प्रस्तुत करता है . आधुनिक युवकों की तरह वह पुस्तकों और महापुरुषों के आदर्श वाक्यों को ओढ़ता बिछाता नहीं है . वह सभी विषयों को अपनी दृष्टि को अपनी दृष्टि से देखता है . उसके नारी सम्बन्धी विचार महत्वपूर्ण हैं . वह नारी के तलाक़ सम्बन्धी अधिकार का समर्थक है वह कहता है कि इस अधिकार से वंचित होने के कारण प्राय : नारियाँ घुटन की ज़िन्दगी काट रही है . नारी की यौन सम्बन्धी भूख उनकी दृष्टि में हमेशा रहती है और आज भी बनी हुई है . 
२. अध्ययनशील व्यक्ति :- 
शिरीष अध्ययनशील व्यक्ति है . आज के युवकों की तरह वह थोथा ज्ञान रखकर किसी से बहस नहीं करता है . हर विषय का उसे अच्छा ज्ञान है . सभी विषय और वास्तु के सम्बन्ध में उनका निश्चित मत है .उसके विचार से उसके दोस्त – मित्र सभी प्रभावित है .यद्यपि उसका ज्ञान परिपक्व है फिर भी उसमें अहंभाव नहीं है . वह अपने विचार को पूर्ण नहीं मानता है – 
मैं तो भाई किसी चीज़ को पूर्ण नहीं मानता हूँ .हर चीज़ विकास करती है . इसीलिए पूर्ण ज्ञानी कोई नहीं होता है मैं तो उसे ज्ञानी कहता हूँ जिसमें जानने की इच्छा हो .जब तक यह इच्छा है ,तभी तक वह ज्ञानी है .इसके बाद लाईब्रेरी की किताब और उसमें कोई अंतर नहीं .”

३. यथार्थवादी :-

 सामान्यतया युवक आदर्श जगत में विश्वास करते हैं .परन्तु शिरीष भाई यथार्थवादी है . वह आदर्शवादी पर मज़ाक बनाते हैं. शिरीष की मान्यता है कि सिधांत को ढ़ोने वाला व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता है . अतः हमें सिधांत और उससे उत्पन्न भावुकता का पथ त्याग कर व्यवहार मार्ग को अपनाना चाहिए .समाज में देखा गया है कि व्यावहारिक व्यक्ति हर अवसर पर लाभ उठा लेता है और सिधान्तवादी कहता फिरता है कि आत्मा गवाही नहीं दे रही है .स्वामी विवेकानंद का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वह कहते हैं कि जिस कार्य को मनुष्य आसानी से दो पैसे में कर सकता है उसके लिए वर्षों तक जंगल में तपस्या करने से क्या लाभ है .वह संयुक्त परिवार कि व्यवस्था को भी कोरा सिधांत मानकर उसकी आलोचना करते हैं .उनका तर्क है कि हम संयुक्त परिवार व्यवस्था को तोड़ें परन्तु बँटवारा करके अलग – अलग भी नहीं रहें . अवश्यकता है कि सभी कार्य क्षेत्र में अपने – अपने परिवार के साथ रहेंगे तो प्रेम भाव भी बना रहेगा और एक दूसरे के काम भी आ सकते हैं . 

४. व्यापक दृष्टिकोण :-

 शिरीष अत्यंत व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण का व्यक्ति है .उसका विचार है कि आदर्श का विज्ञापन करने वाली जितनी संस्थाएँ और संगठन हैं ,वे मानवता के उतने बड़े शत्रु हैं .इनसे समाज का कभी कल्याण संभव नहीं है . वे केवल चंदा एकत्र करने और उसकी मलाई खाने में सक्रीय रहते हैं .
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिरीष जी का चरित्र कई दृष्टियों से इस उपन्यास में अत्यंत महत्वपूर्ण है . वह अत्यंत सूझ – बूझ वाला व्यवाहरिक पात्र है . वह अंध विश्वास ,कोरा आदर्श और सतही भावुकता के विरुद्ध है .लेखक अपनी मान्यताएँ और अपने विचार जो समाज में व्यक्त करना चाहता था उसकी अभिव्यक्ति शिरीष के माध्यम से हुई है .इसी कारण कहा जा सकता है कि शिरीष सारा आकाश उपन्यासकार का “माउथपीस” है . 






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