सिक्का बदल गया कहानी
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सिक्का बदल गया कहानी का सारांश
सिक्का बदल गया कहानी |
शाहनी कहानी के प्रारंभ में सुबह चानाब में नहाने जाती है। पिछले पचास वर्षों से शाहनी इस प्रकार सुबह सवेरे चनाब के ठंडे पानी से नहाती है। पर उसे आज सब कुछ बदला बदला लग रहा है। वह नहाकर शेरा के घर जाती है। शेरा को शाहनी से बचपन से पाला है ,पर आज शेरा का मनोभाव उसे समझ नहीं आता है। शेरा भी अन्दर ही अन्दर शाहनी कि हत्या कर हवेली पर कब्ज़ा करना चाहता है। लेकिन उसे शाहनी द्वारा किये गए उपकारों व स्नेह की याद आ जाती है। शेरा शाहनी को घर तक छोड़ने जाता है। शाहनी वातावरण में फैले हुए गंभीरता को परखकर उदास हो जाती है। सारा दिन शाहनी उदास रहती है। कभी वह हवेली में बहू बन कर आई थी ,आज अपना सारा अधिकार खो रही है। अचानक रसूली आकर शाहनी को ट्रक आने की सूचना देता है। वह समझ जाती है कि अब यह घर छोड़ने का समय आ गया है। बहुत सारे गाँव वाले उसे सांत्वना देने आये हैं। गांववालों के विचित्र व्यवहार को देखकर वह व्यथित हो जाती है और मन में टीस व विवशता लिए हुए वह सबके प्रति ममता का भाव लिए हुए वह अनजानी राह की ओर चल पड़ती है।
सिक्का बदल गया कहानी का शीर्षक
अतः सिक्का बदल गया कहानी में अपने लोग ही बदल गए हैं। सत्ता बदल गयी है। विभाजन के कारण परिस्थितियां बदल गयी है। अतः कहानी का शीर्षक बहुत ही सार्थक व उचित है।
सिक्का बदल गया कहानी का उद्देश्य
सिक्का बदल गया कहानी में कृष्णा सोबती जी ने यह दिखाने का प्रयास किया है भारत विभाजन के कारण अपने लोग ही बदल गए हैं। हिन्दू मुसलामानों के ह्रदय में में एक दुसरे के प्रति नफरत ,अविश्वास और हिंसा उमड़ पड़ती है। हिंसा का नग्न रूप में गाँव जलने लगते हैं। शेरा जिसे शाहनी ने बेटे के सामान पालन पोषण किया था ,उसके अन्दर भी साम्प्रदायिक भावना आ गयी है।उसने न जाने कितने कत्ल किये हैं ,अब वह शाहनी का भी कत्ल करने की सोच रहा है। उसकी नज़र शाहनी के धन पर है।लेकिन उसके मन में द्वन्द भाव पैदा हो जाता है। नरसंहार के बीच साहनी शाहनी को अपना घर ,हवेली ,धन दौलत छोड़ ,अनजान दिशा की ओर निकल पड़ती है। वह अतीत की स्मृतियों को संजोयें सबसे विदा लेती है ,जब ट्रक में बैठती है तो सारा वातावरण उसके प्रति सहानुभूति रखती है।
कहानीकार भारत विभाजन की घटना को शाहनी के माध्यम से दर्शाया है।अपने घर और वतन को छोड़ना इसी विभाजन के कारण हुआ है।अपने ही गाँव के लोगों के ह्रदय परिवर्तन को देखकर ,उनके भीतर समायी हिंसा ,द्वेष की भावना से शाहनी भीतर तक टूट गयी। फसल से लदे -फदें गाँव में खूनी संघर्ष जारी था। शायद इसे ही राज का बदलना या सिक्के का बदलना कहते हैं।
सिक्का बदल गया कहानी के पात्र शाहनी
सिक्का बदल गया कहानी में शाहनी मुख्य पात्र है। वह इलाके के जमींदार शाह जी की पत्नी है। शाहनी अकेली है। उसके पति व बेटे की मौत हो चुकी है। उनके मृत्यु के बाद वह हवेली में अकेले ही जीवन व्यतीत कर रही है। वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए शेरा को बेटा मान लेती है। लेकिन विभाजन की घोषणा के बाद परिस्तिथि बदल जाती है। लोगों के मन में साम्प्रदायिकता आ जाती है।
शाहनी एक धार्मिक विचारों वाली महिला है। माला का जप करना ,सुबह नदी में नहाकर राम का नाम लेना ,सूर्य को अंजलि भर कर नमस्कार करना उसके नित्य कर्म है। शाहनी शाहजी की कमी को तब अधिक महसूस करती हैं।जब उसे दंगों का कुछ आभास सा होने लगता है।शाहजी और पुत्र नहीं है ,वह अकेली है। वह शेरा से अपनी चिंता व्यक्त करती है ,”शाहजी होते तो बीच बचाव करते। एक नारी का उलाहना अपने रक्षक पति के लिए होता है। शाह जी क्या इसी दिन के लिए छोड़ गए थे ? शाहनी व्यथित है ,पर समय की नजाकत को देखकर सहनशील बन जाती है।
शाहनी अपनी उदारता के कारण लोकप्रिय है।वह सबसे आत्मीयता से मिलती है। जाते समय वह सब कुछ त्याग कर जाती है। वह सबकी मदद करती है। बड़े बूढ़े ,जवान सभी उसके नाते -रिश्तेदारों की तरह थे।जाते समय शाहनी के पीछे सारा गाँव उमड़ पड़ता है। उनकी आत्मीयता देखकर वह विचलित भी हो जाती है। वह जाते समय अपने साथ कुछ नहीं ले जाती है।कहानी में लेखिका ने शाहनी के साफ़ मन और निश्चल व्यवहार का वर्णन किया है।जब जाने लगती है तो वह सबको आशीर्वाद ही देती है ,सबके कल्याण की कामना करती है। इस प्रकार व्यथा को मन में छिपाए ,अपना घर -द्वार छोड़ कर एक अनजान राह पर चल देती है। अतः पूरे कहानी में शाहनी के ही इर्द -गिर्द कहानी घूमती है। वह अपने उज्ज्वल चरित्र के माध्यम से पाठकों को बांधें रहती है।