Manavta Hi Vishva Satya Poem Nutan Gunjan Hindi 8

मानवता ही विश्व सत्य – सुमित्रानंदन पंत

मानवता ही विश्व सत्य सुमित्रानंदन पंत नूतन गुंजन हिंदी पाठमाला 8 Manavta Hi Vishva Satya Poem मानवता ही विश्व सत्य कविता का भावार्थ मानवता ही विश्व सत्य का भावार्थ मानवता ही विश्व सत्य कविता मानवता ही विश्व सत्य कविता का सरलार्थ मानवता ही विश्व सत्य कविता के प्रश्नोत्तर गुंजन हिंदी पाठमाला manavta hi vishwa satya poem manavta hi vishva satya poem question answer manavta hi vishva satya poem summary in hindi

Manavta hi Vishva Satya Poem Explanation 

चन्द्रलोक और अंतरिक्ष में
मानव ने किया पदार्पण,
छिन्न हुए लो , देश काल के
दुर्जय बाधा-बंधन।
दिग्विजयी मनु-सुत निश्चय
कितना महत्वपूर्ण यह क्षण
भेद-भाव विरोध शांत कर 
निकट आएँ सब देशों के जन।

भावार्थ – प्रस्तुत पक्तियाँ  मानवता ही विश्व सत्य , कविता से उद्धृत हैं, जो कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहते हैं कि आज मनुष्य ने विज्ञान में इतनी तरक्की कर ली है कि वह अंतरिक्ष और चन्द्र लोक में पहुँच चुका है और वहाँ भी अपना परचम लहरा रहा है । आज मानव ने इतनी उन्नती कर ली है कि विभिन्न देश के बीच में जो दूरियाँ थी वह भी समाप्त हो गई है। आज मनुष्य बहुत कम समय में ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से आ-जा सकता है। पंत जी कहते हैं कि सभी दिशाओं को जीतने वाले मानव के लिए वह पल कितना महत्वपूर्ण होगा जब सभी देश के देशवासी एक दूसरे के निकट आएंगे, आपसी भेद-भाव, द्वेष-भावना, ईर्ष्या, छल, कपट आदि की भवनाओं को मिटाकर मिलजुलकर मानव हित के लिए कार्य करेंगे, वह पल बहुत सुखद और शांत होगा | 

युग-युग का पौराणिक स्वप्न
हुआ मानव का संभव,
शुभ समारंभ नए चंद्र-युग का
भू को दे गौरव।
फहराए ग्रह-उपग्रह में
धरती का श्यामल अंचल
सुख-संपद-संपन्न जगती में
बरसे जीवन-मंगल।

भावार्थ – प्रस्तुत पक्तियाँ  मानवता ही विश्व सत्य  कविता से उद्धृत हैं, जो कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहते हैं कि प्राचीन काल से मानव जिस विश्व शांति का सपना देख रहे थे, वह सपना अब पूरा करना सम्भव है। आज हम सब को एक साथ आगे बढ़ना होगा, जिससे एक नए चन्द्रयुग का आरंभ होगा और धरती को गौरव प्रदान होगा। पंत जी कहते हैं कि आज मानव ने जिस तरह से ग्रह और उपग्रह में विकास का परचम फहराया है। इसके लिए सभी राष्ट्र को गौरव होना चाहिए | अपने विकास के बढ़ते कदम पर और इस धरती पर सुख, समृद्धि , धन की वर्षा हो इस धरा पर रहने वाले सभी प्राणियों के जीवन में मंगल ही मंगल हो | 

Manavta Hi Vishva Satya Poem Nutan Gunjan Hindi 8
मानवता ही विश्व सत्य

देश सभी मिल बनें
नव दिक् – रचना के वाहन,
जीवन पद्धतियों के भेद
समन्वित हों विस्तृत मन!
अणु-युग बने धरा-जीवन हित
स्वर्ग सृजन का साधन,
मानवता ही विश्व सत्य
भू-राष्ट्र करें आत्मापर्ण। 

भावार्थ – प्रस्तुत पक्तियाँ  मानवता ही विश्व सत्य  कविता से उद्धृत हैं, जो कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहते हैं कि सभी राष्ट्र-देशों को मिलकर सामने आना होगा और एक नई दिशा में काम करना होगा | जीवन को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए मिलकर कार्य करना होगा। सभी देश जीवन पद्धति के भेद-भाव को मिटाकर एक साथ हो जाएँ, हॄदय विशाल हो जाए और सभी देश नए सम्भावनाओं के वाहक बने। इस परमाणु युग में जब सभी देश अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए जब बात कर रहे हैं तो हमें धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों के हित में सोचना चाहिए और उनके हित के लिए कार्य करना चाहिए और सभी देशों को मानवता को विश्व सत्य मानते हुए और उसे अपनाकर ही धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है । धरती पर विभिन्न भौगोलिक स्तर पर आधारित दुनिया के सभी देशों को मानवता की भलाई पर ध्यान देने के लिए स्वयं को समर्पित कर देना चाहिए | 

———————————————————

मानवता ही विश्व सत्य कविता का सारांश 

प्रस्तुत पाठ  मानवता ही विश्व सत्य , कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखित है। इस कविता के माध्यम के कवि ने मानवता, विश्वबन्धुत्व, सद्भावना और सहयोग पर बल दिया है। पंत जी की इच्छा है कि सभी मिलकर उन्नति करें और यह अणु युग धरती पर स्वर्ग लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ | सभी देश आपसी भेदभाव का त्याग करें । इस धरती पर आपसी संसाधनों की मारा-मारी से दूर रहें और मानव के कल्याण के लिए कार्य करें।विज्ञान ने आज इतनी तरक्की कर ली है की वह अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहरा चुका है। पंत जी कहना चाहते हैं की इस उन्नति का प्रयोग मानव की भलाई में लगाया जाए । सभी राष्ट्रों को मानवता का विश्व सत्य मानते हुए इसके प्रति अपना समर्पण भाव प्रकट करना चाहिए और उसे अपनाकर कर ही इस धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है। जिससे सभी देश और देशवासी भेदभाव मिटाकर आपस में प्रेम से रहेंगे, जिससे राष्ट्र और भी तरक्की की ओर बढ़ेगा…|| 

Manavta Hi Vishva Satya Poem Question Answer

प्रश्न-1 ग्रह-उपग्रह में धरती का आँचल फहराने से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर- ग्रह-उपग्रह में धरती का आँचल फहराने से तात्पर्य यह है की मानव ने इतनी उन्नती कर ली है कि अपने विकास का परचम ग्रह-उपग्रह में भी फहराया है | 

प्रश्न-2 धरती को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है ? 

उत्तर- धरती को स्वर्ग बनाने के लिए हम सब को आपस में प्रेम व्यवहार से रहना होगा, भेद-भाव, ईर्ष्या, द्वेश की भवना को मिटाकर एक दूसरे का सहयोग करके धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है। 

प्रश्न-3 इस कविता का मुख्य संदेश क्या है ? 

उ.  इस कविता का मुख्य संदेश मानवता, विश्वबन्धुत्व, सद्भावना और सहयोग है तथा सब राष्ट्र-देश एक साथ मिलकर उन्नती करें | 

प्रश्न-4 मानव ने किन बन्धनों को तोड़ा है तथा कहाँ-कहाँ तक अपनी पहुँच बनायी है ? 

उत्तर- मानव ने भेद-भाव, ईर्ष्या, द्वेष जैसे बन्धनों को तोड़कर ग्रह-उपग्रह तक अपनी पहुँच बनायी है | 

प्रश्न-5 मानव के लिए कौन-से क्षण को महत्वपूर्ण कहा जा रहा है और क्यों ? 

उत्तर- मानव  के लिए वह क्षण महत्वपूर्ण होगा जब सभी देश के देशवासी एक दूसरे के निकट आएंगे, आपसी भेद-भाव, द्वेष-भावना ईर्ष्या, छल, कपट आदि की भवनाओं को मिटाकर मिलजुलकर मानव हित के लिए कार्य करेंगे। क्योंकि ऐसा करने से इस संसार में रहने वाले भी प्राणी को कोई दुख नहीं होगा और यह धरती स्वर्ग समान हो जाएगा | 

प्रश्न-6 मानव युगों से क्या स्वप्न देख रहा था और वह किस प्रकार पूरा हुआ ? 

उत्तर – प्राचीन काल से मानव विश्व शांति का सपना देख रहे थे, वह सपना आज पूरा हुआ है आज मानव ने इतनी उन्नति की है कि सब दूरियाँ खत्म हो गई,  आज परिवार दूर रहकर भी साथ है। एक देश से दूसरे देश की दूरियाँ समाप्त हो गई है | आज मानव ने वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग कर सब आसान कर दिया | आज प्राचीन काल का स्वप्न इस प्रकार से पूरा हुआ है | 

प्रश्न-7 धरती का जीवन मंगलमय कैसे हो जाएगा ? 

उत्तर- धरती का जीवन तब मंगलमय हो जाएगा, जब सभी देश अपनी स्वार्थ की भावना का त्याग कर एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर मानवता की भलाई के लिए कार्य करेंगे | 

———————————————————

प्रश्न-8 मंजूषा में से पर्यायवाची शब्द छाँटकर लिखिए — 

सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत

इंसान , मनुष्य

धरा, भू
सम्पत्ति, समृद्धि        
सृष्टि , निर्माण
कल्याण, शुभ

उत्तर-  निम्नलिखित उत्तर हैं – 

• मानव – इंसान , मनुष्य
• पृथ्वी –  धरा, भू
• संपदा – सम्पत्ति, समृद्धि      
• रचना – सृष्टि , निर्माण
• मंगल – कल्याण, शुभ  | 

प्रश्न-9 पौराणिक शब्द ‘पुराण’ में ‘इक’ प्रत्यय लगाने से बना है। इसी प्रकार ‘इक’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइये — 
उत्तर- 
निम्नलिखित उत्तर हैं – 

• मासिक
• साप्ताहिक
• दैनिक
• वार्षिक
• मौखिक

प्रश्न-10 दिए गए वाक्यांशों के लिए एक शब्द पाठ से छाँटकर लिखिए — 

उत्तर –  निम्नलिखित उत्तर हैं – 

i.   जिसे जितना कठिन हो   – दुर्जय
ii.  जो पुराण से सम्बंधित हो – पौराणिक
iii. जो हो सके –  संभव
iv. जो मिला जुला हो – सम्बंधित

प्रश्न-11 नीचे लिखे शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिये — 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं – 

• दुर्जय – द्+ ऊ+  र् +  ज् + अ + य् + अ
• विरोध – व् +  इ + र् + ओ +  ध् + अ
• ग्रह -ग्+र्+अ+ह्+अ
• सम्पन्न – स् + अ + म् + प् + अ + न् +  न् +अ

प्रश्न-12 देश-काल, बाधा-बन्धन और मनु-सुत सामासिक पद हैं। इन पदों का समाज विग्रह है — 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं – 

• देश-काल  –  देश और काल
• बाधा-बन्धन  –  बाधा और बन्धन
• मनु-सुत  –  मनु का सुत

प्रश्न-13 पाठ में आये इन सामासिक पदों का विग्रह कीजिये — 

उत्तर – निम्नलिखित उत्तर हैं –  

• भेद-भाव – भेद का भाव
• ग्रह-उपग्रह – ग्रह और उपग्रह
• जीवन-मंगल – जीवन का मंगल
• जीवन-पद्धति – जीवन का पद्धति
• अणु-युग – अणु का युग
• धरा-जीवन – धरा का जीवन

प्रश्न-14 उदाहरण के अनुसार प्रेरणार्थक क्रियाओं का निर्माण कीजिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर हैं – 

धातु          प्रथम प्रेरणार्थक              द्वितीय प्रेरणार्थक

देना                 दिलाना                      दिलवाना

बसना              बसाना                        बसवाना

मिलना            मिलाना                       मिलवाना

उठ                 उठाना                         उठवाना

करना              कराना                         करवाना

———————————————————

मानवता ही विश्व सत्य कविता के शब्दार्थ

• पदार्पण – प्रवेश, आगमन
• छिन्न – खंडित
• दुर्जय – जिसे जितना कठिन हो
• दिग्विजयी – सभी दिशाओं को जीतने वाला
• मनु-सूत – मानव-पुत्र
• पौराणिक – पुराणों से सम्बंधित
• समारंभ – प्रारम्भ, उद्घाटन
• संपद – सम्पति, धन
• दिक् – दिशाएँ 
• पद्धतियों – रीतियाँ
• समन्वित – एक साथ, इकट्ठे
• भू-राष्ट्र – भौगोलिक स्तर पर बंटे राष्ट्र
• आत्मापर्ण –  स्वयं को समर्पित कर देना   | 


© मनव्वर अशरफ़ी 

You May Also Like