अकसर लोग कहा करते मैं नहीं होता तो क्या होता

अकसर लोग कहा करते मैं नहीं होता तो क्या होता

कसर लोग कहा करते 
अगर मैं नहीं होता तो क्या होता
यह तो स्वयं के अहंकार की पुष्टि 
वर्णा सबके होने के पूर्व से ही 
ईश्वर ने बना रखी है सारी व्यवस्था 
सब जीव जंतुओं की सृष्टि 
संवर्धन रक्षण हेतु तैयार खड़ी है प्रकृति!
जब प्रभु श्रीराम ने सौंपी बजरंगबली को 
मां सीता का पता लगाने का कठिन काम 
तब अशोक वाटिका में जाकर देखा हनुमान ने 
रावण ने एक हाथ में सीता की चोटी पकड़ रखी
दूसरे हाथ में लहरा रही थी एक तलवार नंगी सी!
हनुमान ने सोचा अच्छे समय में मैं आ गया
अगर आज मैं यहां नहीं होता 
तो मां सीता का क्या होता कुछ बुरा अवश्य हो जाता!
कि तत्क्षण रावण भार्या मंदोदरी ने पकड़ी तलवार
जकड़ गई रावण की मुट्ठी, बच गई माता सीता
अबला नारी ने ही नारी की बचा ली तब अस्मिता!
कहते हैं ऐसे ही रावण ने जब जब प्रयास किया 
पराई नारी मातृसम सीता से जोर जबरदस्ती करना 
तब तब रावण को कोई स्थान मिला नहीं था सूना
मनुज को पापकर्म हेतु भी चाहिए महफूज ठौर ठिकाना!
मनुज को आता नहीं कुत्ते बिल्ली पशुओं जैसा 
खाना पीना जहां तहां नित्य कर्म निबटा लेना,
ओहदेदार मनुष्य के लिए तनिक आसान नहीं 
बलात्कार सा घिनौना पाशविक कर्म कर पाना!
रावण यंत्र मंत्रवेत्ता पंडित ब्राह्मण था जन्मना
दिग्विजयी सैन्यरक्षित सम्राट बड़े ठाठ-बाट का
मुश्किल था उनके लिए निपट अकेला हो पाना 
जहां कहीं इच्छित कोई खाली स्थान बना लेना!
कहते हैं जब रावण ने सीता को हरकर 

अकसर लोग कहा करते मैं नहीं होता तो क्या होता
बिठाया था अपने पुष्पक विमान पर 
तत्क्षण एक वीर पक्षी यानी जटायु ने 
रावण को मौके से मार भगाया हमलाकर!
अब तो रावण को मौके से चूककर 
भागना था यान चलाकर जान बचाकर
ऐसा तो संभव नहीं है कि कोई यान चलाए 
और पराई नारी का शील भी हरण कर ले!
मन की गति से उड़ने वाले 
यान को भी चाहिए
यंत्रवेत्ता के मन को यंत्र के साथ होना 
अन्यत्र नहीं कहीं ध्यान में खो जाना!
ऐसा तो संभव नहीं कि कोई कर जोड़कर 
शिवस्त्रोत पाठ करे,और किसी बेबस नारी पर 
अट्टहास करें, ठाठ करें!
जब जब जिसने ऐसा करना चाहा 
धरती हिली आकाश गिरा
प्रलय मची आदमी अपने पाप से 
हर युग में हारा और मरा!
अस्तु पुष्पक यान यांत्रिक 
रावण की यान रुकी जाकर लंका में 
हैलीपेड से रनिवास जाने के क्रम में 
भीड़ से घिरी बचती रही, सीता नहीं थी 
किसी प्रकार की अनहोनी की आशंका में!
फिर तत्क्षण रनिवास के प्रवेशद्वार पर दिखी थी
रावण की पटरानी महासती मंदोदरी का कड़ा पहरा  
रावण के लिए वहां भी नहीं था कोई मौका सुनहरा!
मजबूरी में अपहृता सीता को रखी गई अनुज पुत्री 
त्रिजटा संग अशोक वाटिका के खुले वातावरण में!
ऐसे में कोई कितना बड़ा पापी क्यों ना हो
पुत्री के सामने पराई नारी का कैसे बलात्कार कर सकता?
कहते हैं जबतक हनुमान 
और राम की सेना नहीं पहुंच सके थे लंका
तबतक ऐसे ही मां सीता की होती रही रक्षा
विश्व के किसी रामायण में लिखी नहीं गई
रावण का सीता के साथ बलात्कार की कथा
किसी धर्मग्रंथ में उठाई नहीं गई ऐसी शंका!
पवित्र नारियों के प्रति कभी कोई कवि 
घृणित कविता कथा कैसे लिख सकता?
जिसको जग ने मान लिया जगतमाता
उनपर उंगली उठा सकता नहीं विधाता!
ऐसे में किसी का कहना मैं नहीं होता
तो क्या होता बकवास कथन सा लगता
हम जहां नहीं होते वहां व्यवस्था होती
व्यवस्था के खिलाफ ज्यादती के लिए
ईश्वरीय सजा हर युग में मुकर्रर होती!
– विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101

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