अपनत्व
हुआ करते थे वो एक साथ
आगे बढते थे डाले हाथो मे हाथ
फिर आई उनपर एक नई पहर
जिसने डाला उनपर संघर्ष का कहर
फिर टुटा एक अटूट रिश्ता
जिसने बदल दिया सब रास्ता
पतो सी मुरझाई जिन्दगी
डाला असर दुख बरसाई जिन्दगी
बटँ गया वो जीवन हमारा
जिसपर रचाया ख्वाब सारा
हिंसा – तनाव ने जन्म लिया
वातावरण को तंग किया
अन्जाने मे फिर जीवन ने बदला मुख
महसूस हुआ फिर मिल गया सुख
लगे थामने हाथ अपने
पर याद आया कि थे वे सपने
पर एक आश फिर मन मे आई है
हिन्दू – मुस्लिम – सिख- ईसाई सब भाई-भाई है
तोड़ना है इस तनाव की दरारो को
और थामना है अपनत्व की बाँहो को
– मोनिका कुमारी मिश्रा