औकात बताती रोटी
अच्छे और बुरे दोनों
दिन दिखलाती रोटी।
सारे दांव पेंच जीवन
में सिखलाती रोटी।
रोटी |
1.
भूंखे पेट कभी तुम
करो अनुभव जीवन में,
मिश्री मेवा से ज्यादा
मीठी बन जाती रोटी।
2.
उलटे पाँव लगे जब
किस्मत का लेखा जोखा,
गरीब के सपनों में
सचमुच रात में आती रोटी।
3.
वसुधा के मालिक हों
या हों कुबेर के वंशज,
बड़े बड़ों को भी धरती
पर धूल चटाती रोटी।
4.
हो सत्ता संघर्ष या
तंत्र से जन टकराये,
सबके सभी सवाल
स्वयं सुलझाती रोटी।
5.
समय की चौपड़ में पड़ते
जब मज़बूरी के पांशे,
जिश्म के टुकड़ो में खुद
अपना मोल बताती रोटी।
6.
दम्भ, द्वेष, पाखंड, झूंठ
सब मिल कसते जब गर्दन,
धर्म तुला में सच की
कीमत पर तुल जाती रोटी।
7.
रिश्तों के अनुबंध कभी
पड़ने लगते जब ढीले,
मर्यादा को “अमरेश”
औकात बताती रोटी।
रचनाकार परिचय
अमरेश सिंह भदोरिया
अजीतपुर
लालगंज
रायबरेली उ0 प्र0
पिनकोड-229206
Email-amreshsinghhh@gmail.com