काँच के शब्द

काँच के शब्द

लोग रक्तदान करते है,
मैं जज्बात दान करता हूं।
लोग जीवन देते है,
मैं कई बार जन्म लेता हूं।
चश्मों से आँखे ठंडे नहीं हुआ करते
जब आँखों के नीचे,
आग ही आग हो।
काँच के शब्द
घिन आती है मुझें अपनें नाक से
दुश्वारियों की बदबू,
सुघ ही लेता है।
चिल्लाता हूं मैं भावनाओं की कैद से
बस मेरी आवाज,
आसमान ही सुनता है।
दुःख के दलदल भी,
बड़े जिद्दी होते है।
एक पैर निकला भी नहीं,
दूसरा पैर धँस जाता है।
ए ख्वाहिशें बहुत भारी होते है
एक ने अभी रूलाया ही था,
दूसरे ने कंधे को तोड़ दिया।
लोग कहते है,
मैं शब्दों से जहर उगलता हूं।
अरे साहब!
जब मैंनें ही इसे पीया है तो,
उगलेगा कौन?
हर चीज छोटी नहीं होती
छोटी तो बस सोच होती है।
माँ के सिवाय यह जहाँ
कितना सुना-सुना है।
झींगुरों की आवाज,
हर शाम बता जाती है।
इन्सानों से बेहतर है मेरे बरतन
जब भी मैल जमता है,
उसे धो कर अपने पास रख लेता हूं।
अन्धेरा सिर्फ रातों में ही नहीं होता
कभी-कभी थके,
आँखों में भी होता है।
आज रोटी खाते-खाते,
मैं फिर रो पड़ा।
रोटी के एक-एक टूकड़े में,
माँ का जला हाथ नजर आया।
लोग कहते है,
मुझें कम सुनाई देता है।
सब सुनता हूं,
बस सच और झूठ कह नहीं पाता हूं।
बार-बार कहते है सब,
हाथ साफ नहीं है।
क्या हाथ का साफ होना जरूरी है?
या नियत का साफ होना?
कफ़न से जाकर कोई कह दे…
अभी दुकानों में ही पड़ा रहें,
अभी कई ख्वाहिशें मेरे जिन्दा है।
कभी-कभी कुछ एहसासे,
अपने जेबों में बचा लेता हूं उनके लिए,
कोई रोज पूछ लेता है,
आप कैसे है?
                    

  – राहुलदेव गौतम

You May Also Like