गोरी बिल्ली का घमंड चकनाचूर हो गया

गोरी बिल्ली का घमंड चकनाचूर हो गया

गोरी बिल्ली का घमंड चकनाचूर हो गया एक गोरी बिल्ली थी। जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका रंगरूप था।वह एकदम गोरे रंग की सुन्दर व साहसी थी। वह बड़ी से बड़ी छलांगे लगा लेती ,पल भर में बड़े से बड़े पेड़ों पर चढ़ जाती। लगभग हर चीज़ में वह सदैव आगे रहा करती थी।उसे अपने ऊपर बहुत धमंड था। उसका यह मानना था कि वह जैसा कर लेती वैसा दूसरी बिल्ली नहीं कर सकती है। अगर कर भी सकती है तो केवल गोरी बिल्लियाँ। काली बिल्ली नहीं।गोरी बिल्ली काली बिल्लियाँ से बहुत घृणा करती थी। उनका बदसूरत चेहरा भी देखना वह पसंद नहीं करती थी। वह मानती थी कि जीत केवल गोरों  का ही अधिकार होता है और किसी का नहीं। 
एक बार की बात है। जंगल के राजा शेरसिंह ने एक खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया। इसमें भाग लेने के लिए दूरदराज के जंगलों से भी गोरी काली बिल्लियाँ काफी संख्या में आई।गोरी बिल्ली ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया। लेती भी क्यों नहीं ? वह अपने जंगल की जानी मानी एक खिलाड़ी जो थी। जंगल का बच्चा बच्चा उसके नाम और काम से वाकिफ था। 
गोरी बिल्ली
गोरी बिल्ली
प्रतियोगिता में भाग लेने आई काली बिल्लियों को देखकर गोरी बिल्ली का मन घृणा से भर गया। उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज कुछ भी हो ,वह काली बिल्लियों को सबक सिखा कर रहेगी ताकि उन्हें अपनी औकात का पता चल जाए कि जीत केवल गोरे गोरियों का अधिकार होती है ,काले कालियों का नहीं।खेल प्रतियोगिता अपने समय के मुताबिक ठीक बारह बजे दिन को शुरू हो गयी। जंगल के राजा शेरसिंह खेल को बड़े शौक से देख रहे थे। बगल में बैठे मंत्री चीता सिंह जी तो उसमें खो से गए थे। दर्शकों में उत्साह व ख़ुशी की लहर दौड़ रही थी। इस बार की तरह इस बार भी इन सभी लोगों को यह विश्वास था कि कुछ भी हो जीतेगी अपने जंगल की गोरी बिल्ली ही। 
अरे यह क्या ? इस बार का खेल तो काली बिल्लियाँ जीत रही हैं। यह देखकर तो गोरी बिल्ली हैरान रह गयी। अचानक तभी एक काली कलूटी बिल्ली ने गोरी बिल्ली सहित अन्य बड़े से बड़े खिलाड़ियों को बड़े अंतर से पछाड़ते हुए शानदार प्रदर्शन कर चार स्वर्ण पदक जीते।गोरी बिल्ली की हालत तो जैसे काटो तो खून नहीं।वह काली कलूटी बिल्ली और कोई नहीं थी बल्कि चन्दन वन की लूसी बिल्ली थी। लूसी ने सबसे पहले १०० मीटर की दौड़ जीती और फिर २०० मीटर में भी सभी खिलाड़ियों को बड़े अंतर से पछाड़ते हुए सोने का तमगा अपने नाम किया। लम्बी कूद तो उसको ससे प्रिय थी तो वह भला कैसे किसी को इसमें पार पाने देती। 
लूसी बिल्ली ने ऐसी लम्बी छलांग लगायी कि सभी दाँतों तले अंगुली दबा बैठे।गोरी बिल्ली भी भौचक्की थी। किसी भी खिलाड़ी की यह सबसे लम्बी छलांग थी। लूसी का यह चौथा ओलंपिक स्वर्ण पदक था।गोरों के जंगल में एक काली कलूटी खिलाड़ी का यह पराक्रम यही नहीं थमा। जब ५०० मीटर की रिले दौड़ हो रही थी तो लूसी पर सबकी निगाहें थी।यह भी लूसी नहीं चूकी।गोरी बिल्ली का घमंड चकनाचूर हो गया और उसे यह मानना पड़ा कि पदक या सफलता रंगभेद से नहीं मेहनत ,लगन ,शिक्षा और बुद्धि – विवेक से मिलती है। 
गोरी बिल्ली अब रंगभेद को त्यागकर सब से मिलजुल कर रहने लगी।क्योंकि उसके अन्दर अब घमंड की जगह ज्ञान और प्रेम भरा हुआ था।लूसी बिल्ली पुरस्कार प्राप्त कर ख़ुशी ख़ुशी अपने वतन को तो चली गयी किन्तु एक ऐसा इतिहास रच गयी जिसमें खेल के साथ साथ गोरी बिल्ली के घमंड का चकनाचूर होना भी शामिल था। 
कहानी से शिक्षा – 
  • हमें अपने रंग रूप पर घमंड नहीं करना चाहिए। 
  • जीवन के योग्यता महत्वपूर्ण होती है ,रंग रूप नहीं।  

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