जीवन का पाठ

जीवन का पाठ

अपने शिक्षकों को याद करूं तो कई नाम दिमाग में आते हैं। पढ़ाई में अच्छे होने के कारण सभी शिक्षकों का मुझे भरपूर स्नेह मिला। इसलिए यहां पर मैं विशेष रूप से अपने उस शिक्षक के बारे में बताना चाहूंगी जिन्होंने
जीवन का पाठ

जीवन का व्यावहारिक पाठ पढ़ाया। मेरे पिता। वो स्वयं एक शिक्षक थे। अच्छा विद्यार्थी होने के कारण उनका स्नेह भी मेरे ऊपर बाकी भाई बहनों से अधिक था। पहले विद्यायल फिर कॉलेज और फिर विश्वविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई में उनका निर्देशन निरंतर प्राप्त होता रहा।

हमारे गांव के पास के गांव में एक ही विद्यालय था। आस पास के सभी गांव के विद्यार्थी उसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते थे। दसवीं कक्षा के बाद उस समय विज्ञान विषय पढ़ने की सुविधा उस विद्यालय में नहीं थी। लड़के आगे पढ़ाई करने शहर चले जाते थे। लड़कियां कला वर्ग की पढ़ाई करती या पढ़ाई छोड़ दिया करती थी। मै भी कुछ ऐसा ही करने की इच्छा रखती थी। परन्तु उन्होंने मुझे विज्ञान विषय लेकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समझाया कभी भी भीड़ के पीछे मत भागो। स्वयं को इतना काबिल बनाओ कि भीड़ तुम्हारे पीछे चले। उनकी बात मानकर मैंने विज्ञान विषय के साथ स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई पूरी की और स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया। उनकी यह सीख मुझे हर कदम पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। मेरे साथ कोई है या नहीं देखे बिना।




– अर्चना त्यागी
व्याख्याता रसायन विज्ञान
एवम् कैरियर परामर्शदाता
जोधपुर ( राज.)

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