बेटी का पिता

बेटी का पिता

तारों की छांव में
बिटिया ने मेरी चलना सीखा
चलती तो वो बचपन में भी थी,
पर तब मैं होता था उसके साथ
आज मगर जो वो चली हैं
तो अकेली हैं,

बेटी का पिता
बेटी का पिता

हां मैं तो हूं उसके साथ हमेशा
पर आज जो वो चली है,
तो सयानी हो गयीं
अब जो चलना सीख ही लिया उसने
वो पंछी हो गयी,
मैं जानता हूं,
बिटिया को अपनी
लाख शिकायतें हो जहाँन से उसे
नाराजगी पर अपनी
खुशी की चादर ओढ़ना
जानती हैं,
बिटिया मेरी जीना जानती हैं
आंसू वो अपने
खुद के साथ बांटना बखूबी जानती हैं
बिटिया मेरी जीना जानती हैं
जिंदगी से वो लड़ना जानती हैं,
बेटी का पिता हूं
बेटी मेरी
मेरी जान हैं,
झगडती मुझसे कभी कभी वो जरूर हैं
इन आँखों का मगर
वो नूर है,
हक है जीने का
उसे भी,
जीने का सबब
बखूबी मेरी बिटिया जानती है ।


– सोनिया राव 

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