रसगुल्ला पर कविता

रसगुल्ले

गोल गोल सुंदर रसगुल्ले
मुझ को लगते प्यारे हैं।
मम्मी मुझको एक खिला दो

रसगुल्ले
रसगुल्ले

देखो कितने सारे हैं।

कितने मधुर रसीले मीठे
मुँह में पानी आता है।
जब भी इन पर नजर पड़ी
खाने को मन हो जाता है।

डूबे हुए चासनी में ये
माँ तेरे जैसे लगते हैं।
इनको माँ तू मुझको दे दे
ये मेरे मुँह में फबते हैं।

टिफिन में माँ रसगुल्ले रखदे ,
लंच नहीं ले जाऊँगा।
सब मित्रों के संग बाँट कर
रसगुल्ले मैं  खाऊँगा।



– सुशील शर्मा

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