लाचार मजदूर

लाचार मजदूर

ये कैसा शोर हो रहा है?
हर तरफ तबाहियों का ,
भूख प्यास से तड़पते
विलखते बच्चो का,
हर रोज मौत से जंग हो रहा है।
लाचार मजदूर
लाचार मजदूर
जहाँ गए थे जिंदगी बनाने,
वही जहर बन गया है,
रात दिन कहर बन,
पूरा शहर दर बदर बन गया है।
दर्द दामन में दबाए ,
दबे पांव चले आ रहे है,
वतन पैदल ही आ रहे ,
ट्रकों में भेड़ बकरियों के तरीके
आ रहे है।
तो कुछ  एसी बसों से आ रहे है।
हम जमीन के थे ,
जमीन से आ रहे है।
हम लाश बन,
बदहवास आ रहे है।
कुछ तो रस्ते में ही मौत से सो जा रहे ,
कुछ मर मर के आ रहे है,
गाँव आ रहे ,
अपनो के पास आ रहे है।

– प्रदीप माझी(शिक्षक)
टांडा, अम्बेडकर नगर

You May Also Like