हकीकत

हकीकत

बाहर की
दुनिया से परे
और एक दुनिया है
मेरे भीतर।
वहाँ सब कुछ
स्वाभाविक होता है।
वह आइना की तरह
सब कुछ दिखा देता है।
छुपाने के लिए
हकीकत
हकीकत
वहाँ कुछ बचता ही नहीं
कोई दिखावा
नहीं चलता।
वहाँ कुछ है
जो कोसता है मुझे
हर दिखावे के लिए।
सच्चाई के राह पर
चलने का
हिदायत देते हुए
मुझे चेताता है
यहाँ कुछ भी
अपना नहीं है
सजग रहो
अपने आप को 
दीन-हीन मत बनाओ
भीतर के चैतन्य को
जगाओ…
भीतर एक जागरण है
चैतन्य का
अद्भुत प्रकाश है
मैं उसी के उपासना में
निमग्न रहता हूँ
और मौन हो जाता हूँ।
बाहर की दुनिया तो
एक दिखावा है
एक धोका है।
– वैद्यनाथ उपाध्याय

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