हे भारतवर्ष महान
हे भारतवर्ष महान !
अपनी विकृति पहचान,
अन्यथा महासंस्कृति का
शीघ्र हो जाएगा अवसान!
कभी सनातन ऋषि जन
राम-कृष्ण-गौतम के दर्शन
ले फैले अरब, इराक,ईरान
ग्रीक, मिश्र,अफगानिस्तान,
थाई, वर्मा,तिब्बत,इंडोनेशिया
मंगोलिया,मलाया, कोरिया,
लंका, भूटान,चीन, जापान,
किंतु आज हम सब खोकर
सिमट चुके हैं हिंदुस्तान!
हे भारतवर्ष महान!
जरा जल्द करें अनुमान,
क्या शीघ्र नहीं हो जाएगा
इस विरासत का अवसान?
आज से दो हजार वर्ष पूर्व में
जब जन्मे थे ईसा,ईसाइयों ने
आगे बाइबिल, पीछे से बंदूक ले
छीना विश्व का दो तिहाई हिस्सा!
इतना ही नहीं हाल के चौदह सौ
वर्ष पूर्व, एक हाथ में ले तलवार,
दूसरे में कुरान लेकर जब निकला
अरब से इस्लाम,खोए हम
ढेर सारे अपने मुकाम!
जरा याद करो हे महान!
वर्ण-संकीर्णता-छुआछूत का
क्या यह नहीं है अंजाम?
जब हम दिग्भ्रमित और
विकृत होकर काट रहे थे
अपने हाथ-पांव,तभी हमारे
कमजोर प्रतिद्वंदी बांट सके
भारत के नगर और गांव!
फिर हम आज पंगु हैं,कोई
राजा भोज, तो कोई गंगू है
ऐसे में कैसे कोई समझे कि
कभी हम हीं थे जगतगुरु के
सीधे,सच्चे और अच्छे दावेदार!
आज एक पिता के पुत्र चार,
एक के हिस्से में प्यार-दुलार,
दूसरे को सत्ता का अधिकार,
तीसरा लाचार,चौथा मजबूर
रोजी-रोटी तक से लाचार!
जगतगुरु के किस गुर पर
आज हम करें शान!
हे भारतवर्ष महान!
आज आर्य नस्ल की
पंजाब की मां जनती
तीन तरह की संतान!
एक कहता जय श्रीराम!
दूसरा कहता है वाहे गुरु!
वाहे गुरु! वाहे गुरु राम जी
तीसरा पाकिस्तानी हिस्से का
बन कर पंजाबी मुसलमान,
भूल गया अपनी वल्दियत को
भाई था जो, दुश्मन बन बैठा,
मिटा दी नस्लगत पहचान!
पूरब का एक बंगवंधु
कहता जय मां तारा!
दूसरा पश्चिम को निहार
लगाता है अल्लाह हो
अकबर का नारा,भूल के
दोनों ही अपना भाईचारा!
आज जाति भी सही है
विदेशी मजहब भी सही,
सही है फिरकापरस्ती!
पर रक्त नहीं,वंश नहीं,
झूठी हो गयी सांस्कृतिक
विरासत , झूठी पहचान!
जय भारतवर्ष महान!