मेरे प्रिय मित्रो,
मेरे ब्लॉग “मेरी दृष्टि से” के माध्यम से मैंने हिन्दी –साहित्य के रचनाकारों व उनके साहित्य तथा साहित्य के इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को नए संदर्भ में रख कर उसे विचारने का प्रयत्न किया है। इस कड़ी में मै सर्वप्रथम साहित्य के विशिष्ट रचनाकारों का सामान्य परिचय दे रहा हूँ,इसके बाद उनके ग्रंथो तथा साहित्य के इतिहास की समस्याओ पर विचार करूँगा । इस काम में आप लोगो का जो सहयोग मिल रहा है,उसके लिए मै बहुत अनुग्रहित हूँ। आपके सहयोग से ही मै इस कार्य को और उपादेय बना पाउँगा।
“साहित्य समाज का या व्यक्ति का दर्पण नही है“। यह बात किसी को अनुचित प्रतीत हो सकती है,किंतु उस पर विचारने की जरुरत है। साहित्यकार स्वयं जिस समाज से आता है,वह समाज(व्यक्ति) ही इतना कुंठित या खंडित है कि उसके द्वारा लिखा गया साहित्य भी कई स्तरों पर खंडित होगा। लेखक के सामने आर्थिक समस्याये है जिन्हें वह अनैतिक ढंग से पूरा करता है। डॉ.गोविन्द चातक का यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि “सिधान्तः बड़े बड़े पदों और सरकारी कमेटियों में नामजदगी पद्मश्री और पुरस्कार प्राप्ति आदि कई प्रकार के प्रलोभनों में आज का लेखक आता रहा है । अभाव ग्रस्त मध्य वर्गीय भावना के प्रतिनिधि होने के कारण वह उन पर बुरी तरह झपटा है“। मै इस कार्य को वर्त्तमान सन्दर्भ में अनुचित नही देख पाता क्योंकि बिना बुनियादी कारणों को मिटाये बिना कोई व्यक्ति (साहित्यकार) ऐसा ही खंडित होगा। आज किसी भी जगह राष्ट्रिय स्तर पर सेमिनारों के आयोजित होने पर हमारे ये तथाकथित साहित्यकार किस तरह की राजनीति करते है और ओछापन दिखाते है। यह बात जगजाहिर है। सामंती व्यवस्था के अत्याचारी होने पर इन साहित्यकारों (बुद्धिजीवियो) ने कभी कोई सार्थक आवाज नही उठाई । मै यहाँ उनका नाम नही लूँगा । कुछ प्रश्नों को जिन्हें जल्द ही सुलझा लिया जाना था,उन्हें और उलझाना इनकी नियति बन गई है। इनके पीछे कहीं न कहीं ख़ुद को प्रतिष्ठत करने की योजना चल रही है। और मजे की बात यह है कि ये साहित्यकार स्वयं को मनोविज्ञान का पंडित मानते है ,लेकिन स्वयं अपने मनोविज्ञान को समझ नही पाते।
ऐसे कितने ही प्रश्नों को मै इस ब्लॉग के माध्यम से विचार व्यक्त करूँगा,क्योंकि मै न तो लेखक हूँ या न पेशेवर आलोचक ,मै मात्र साधारण पाठक हूँ,इसलिए मै शायद उन चीजों को भी देख पाऊ जिन्हें हम स्वार्थवश नही देखना चाहते। अंत में मै अपनी त्रुटियो व कमियो के लिए क्षमायाचना करता हुए कृति–पाठको से सादर निवेदन करता हूँ,कि वे अपने अमूल्य सुझावों द्वारा इस सन्दर्भ में अपना योगदान दें, ताकि मै उस पर विचार कर और बेहतर लिख सकूँ ,इसी आशा में,
आपका मित्र
आशुतोष दुबे “सादिक “