कोरोना महामारी के समय में घटती नैतिकता

कोरोना महामारी के समय में घटती नैतिकता

यूं तो महामारी स्वयं में ही डरावना सा नाम प्रतीत होती है,परन्तु बीते कुछ समय में इसने ना केवल शारिरिक हानि पहुंचाई बल्कि हमारे संपूर्ण असितत्व को हिलाकर रख दिया है,नैतिकता को गहरी चोट लगी है ,कोरोना अपने आप में भय का दूसरा नाम बन सा गया है।स्मार्ट फोन के इस युग में आदमी एक तो पहले ही स्वयं में सिमट गया और आज रही सही कसर इस महामारी ने पूरी कर दी।माना की एहतियातन हमें इक दूसरे से दूरी बनाए रखना जरुरी है पर क्या हम इंसानियत को परे कर देगें।
कोरोना महामारी के समय में घटती नैतिकता

यही तो हो रहा है इन दिनों आदमी एक दूसरे से आक्रांत सा रहने लगा है,थोड़ा सा धैर्य हम सबको रखने की जरूरत है,ये सच है कि समय सदैव एक सा नहीं रहता पर ये भी तो सहीहै कि ये सब बहुत जल्दी खत्म होने वाला नहीं है ऐसे में हमारा छोटा सा प्रयास ही काफी होगा इस मुश्किल समय से लडऩे के लिए।घर परिवार में सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग परेशान हैं हम सब तो फिर भी अपने आपको व्यस्त रख सकते हैं पर इन सबका क्या होगा, क्या ये इस तरह मानसिक रोगी नहीं बन जायेंगे ,थोड़ी आवश्यकता है विचार करने की,अन्यथा हम अपने सुनहरे भविष्य का स्वप्न कैसे देखेंगे।कुछ व्यवसाय ऐसेहैं जो एकदम बर्बादी  हो गये और कुछ तेजी से चल पड़े ।थोडी़ सी इंसानियत  जरूरी है देश को समान रूप से चलने के लिए ।हमें भूलना नहीं चाहिए हमारे देश ने कितनी ही विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और नैतिकता को नहीं छोडा़ है ,फिर आज क्यूँ हम  मानवता से विमुख हो रहे हैं 

       
आइए इस संकट की घड़ी का सामना धीरज से  और मिल जुल कर करें ,हमारी मानवता कभी भी इस अदनी सी बीमारी के आगे ना हारें अपने हौसले को बुलंद रखें ,जीत बहुत जल्द हमारी ही होगी।।

                     


प्रियंका गणेश दाधीच

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