डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी

डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी

डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी पाठ-07- डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी Summary Class 5 Hindi डाकिए की कहानी ,कँवरसिंह की जुबानी पाठ का सारांश Dakiye ki kahani Kanwar Singh ki jubani NCERT Solutions for Class 5 Hindi Dakiye Ki Khani Kawar Singh ki Jubani डाकिए की कहानी, कुँवरसिंह की जुबानी  Dakiye Ki Khani Kawar Singh ki Jubani Class 5 Hindi Chapter 7 डाकिए की कहानी, कुँवरसिंह की जुबानी 

डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी पाठ का सारांश 

डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी  पाठ में लेखिका ‘प्रतिमा शर्मा’ का डाकिया कँवरसिंह के साथ भेंटवार्ता को लिपिबद्ध किया गया है | लेखिका पाठ के शुरूआत में लिखती हैं कि शिमला की माल रोड पर जनरल पोस्ट ऑफिस है | उसी पोस्ट ऑफिस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है | सुबह के 11:30 बजे हैं | खिड़की से गुनगुनी धूप छनकर आ रही है | इस धूप का मजा लेते हुए दो पैकर और तीन महिला डाकिया फटाफट डाक छांटने का काम कर रहे हैं | वहीं पर मैंने सरकार से पुरस्कार पाने वाले डाकिया कँवरसिंह जी से बातचीत की | 
प्रस्तुत भेंटवार्ता में लेखिका से बातचीत के दौरान डाकिया कँवरसिंह के द्वारा अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक परिचय के साथ-साथ अपनी नौकरी से सम्बन्धित सभी उतार-चढ़ाव का अनुभव साझा किया गया है | 
पाठ में उल्लेखित बातचीत के मुताबिक कँवरसिंह हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी हैं |
डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी
डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी

उनकी उम्र पैंतालीस साल है | उनके चार बच्चे हैं, जिनमें तीन लड़कियाँ और एक लड़का शामिल है | दो लड़कियों की शादी हो चुकी है | पहाड़ी और बर्फीला इलाका होने के कारण उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाती है | हिमाचल में हजारों ऐसे गाँव हैं, जहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जा सकता है | कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं, जो लगभग गाँव से पाँच किलोमीटर दूरी पर है | डाकिया कँवरसिंह पहले भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे | अब वे पैकर के पद पर हैं | 

प्रस्तुत पाठ में वार्तालाप के दौरान कँवरसिंह ने बताया कि वे चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने गाँव-गाँव जाते हैं | सूचना और संदेश देने के बहुत से नए तरीके आ जाने के बावजूद गाँव में आज भी संदेश पहुँचाने का सबसे बड़ा साधन डाक ही है | 
लेखिका के एक सवाल पर अपनी हामी भरते हुए कँवरसिंह कहते हैं कि, जी हाँ हमारे देश की डाक सेवा आज भी दुनिया में सबसे बड़ी और सस्ती डाक सेवा है | आगे उन्होंने बताया कि बेशक उन्हें अपनी नौकरी अच्छी लगती है, क्योंकि उन्हें मनीआर्डर पहुँचाने पर, नियुक्ति पत्र का रजिस्टरी पत्र पहुँचाने पर, पेंशन पहुंचाने पर लोगों का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है | 
पाठ के अनुसार, शुरूआती चरण में डाकिया कँवरसिंह ने लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गाँव में तीन साल नौकरी की इसके बाद पाँच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पाँच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की | अपनी बातों में कँवरसिंह कहते हैं कि गाँवों में डाकसेवक का बहुत मान किया जाता है | पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाना बहुत मुश्किल काम है | किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊँचे जिले हैं | इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोजाना चलना पड़ता था | कँवरसिंह अभी पैकर हैं | एक इम्तिहान पास करने के बाद डाकिया बना जा सकता है |
लेकिन पैकर के काम के हिसाब से वेतन बहुत कम दिया जाता है | सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले बाबू का वेतन कहीं ज्यादा है | 
वार्तालाप के अाख़िर में जब लेखिका ने कँवरसिंह से पूछा कि काम के दौरान क्या कभी कोई खास बात हुई है, तो उन्होंने ने एक घटना का जिक्र किया — 
कँवरसिंह कहते हैं कि जब मेरा तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था | तब वहाँ मुझे रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस की चौकीदारी का काम दिया गया था | यह 29 जनवरी 1998 की बात है | रात के लगभग साढ़े दस बज रहे थे | किसी ने दरवाजा खटखटाया | दरवाजा खोलने पर पाँच-छह लोग अंदर घुस आए और मुझे पीटना शुरू कर दिए | मेरा सिर फट गया और मैं बेहोश हो गया था | अगले दिन जब मुझे होश आया तो मैं शिमला के इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में भर्ती था | उन दिनों मेरा 17 साल का बेटा मेरे साथ ही रहता था | उसी से पता चला कि मेरे चिल्लाने की आवाज़ सुनकर लड़का और अॉफिस के दूसरे लोग जो नज़दीक ही रहते थे, दरवाजे का शीशा तोड़कर अंदर आए और मुझे अस्पताल पहुँचाए | मेरे सिर पर कई टाँके लगे थे | उसकी वजह से आज भी मेरी एक आँख से दिखाई नहीं देती | 
तत्पश्चात् डाकिया कँवरसिंह जी लेखिका से कहते हैं कि सरकार ने मुझे जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया है | यह इनाम 2004 में मिला | इस इनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है | मैं और मेरा परिवार बहुत खुश हुए थे | 
लेखिका से बातचीत के अंत में कँवरसिंह बेहद गर्व से कहते हैं —- 
” मैं बेस्ट पोस्ट मैन हूँ…||” 


डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी पाठ का उद्देश्य 

हमें अपने कार्य के प्रति सदा समर्पित, निष्ठावान और ईमानदार रहना चाहिए | समाज सेवा की भावना दिल में बसाकर अपने कार्यों के प्रति गर्व महसूस करना चाहिए | स्मरण रहे, कर्म ही पूजा है | 


डाकिए की कहानी, कुँवरसिंह की जुबानी प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 कँवरसिंह को ‘बेस्ट पोस्टमैन’ की उपाधि क्यों और कब मिली ?
उत्तर- कँवरसिंह डाक की चीजों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर अनजान बदमाशों से पीट-पीट कर अधमरा हो गए थे | जिसके लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया | यह इनाम उन्हें 2004 में मिला था | 
प्रश्न-2 कँवरसिंह कौन है ? उसके एक बेटे की मौत कैसे हुई थी ?
उत्तर- पाठ के मुताबिक, कॅवरसिंह भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे, जो हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी थे | बाद में वे पैकर बन गए थे | लेकिन खुद को नीली वर्दी वाला डाक सेवक ही मानते थे | उनका एक बेटा गाँव की पहाड़ी से लकड़ियाँ लाते हुए गिर गया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी | 
प्रश्न-3 पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाने में कँवरसिंह को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता था ? 
उत्तर- पहाड़ी इलाकों में बर्फ के साथ-साथ ठंड बहुत पड़ती थी | हिमाचल प्रदेश के कुछ जिले जैसे किन्नोर और लाहौल स्पीति में तो अप्रैल महीने में भी बर्फबारी हो जाती थी | बर्फ में चलते हुए कँवरसिंह को अपने पैर ठंड से बचाने पड़ते थे क्योंकि स्नोबाइट का खतरा लगा रहता था | इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर हर रोज चलना पड़ता था | 


डाकिए की कहानी कँवरसिंह की जुबानी पाठ का शब्दार्थ

पैकर –       पैकिंग करने वाला व्यक्ति 
फटाफट –   शीघ्रता से, जल्दी-जल्दी 
ज़रिया –      साधन
तबादला –   स्थानान्तरण
भयंकर –     डरावना, अत्यधिक भीषण (जैसे भयंकर गर्मी) | 
इम्तिहान –   परीक्षा 
इनाम –        पुरस्कार 
प्रशस्ति पत्र –प्रशंसा के पत्र

You May Also Like