महाराणा प्रताप पर कविता
वीर प्रताप और चेतक
हो सवार जब चेतक पर
राणा प्रताप रण में आया।
महाराणा प्रताप |
रौद्र रूप था उसका भारी
दुश्मन भी था घबराया।।
दुश्मन रण में खेत रहा
चमका बिजली सा भाला।
रणचंडी शमशीर बनी थी
आंखों में धधक रही ज्वाला।।
पाकर एक इशारा चेतक
उड़ चला पवन की वेग चाल।
आंखों से क्रोध बरसता था
दुश्मन का वह बना काल।।
चेतक जहां पहुंच जाता
शत्रु के पांव उखड़ जाते।
टापों की ठोकरें खा कर
गोद काल की सो जाते।।
किया पार नाला था चौड़ा
चेतक नहीं जरा घबराया।
स्वामी भक्ति दिखाई उसने
फिर काल को गले लगाया।
सो गया हमेशा को वह चेतक
वीरता का जो परिचायक था।
हल्दी घाटी के रण का केवल
आंखों से क्रोध बरसता था
दुश्मन का वह बना काल।।
चेतक जहां पहुंच जाता
शत्रु के पांव उखड़ जाते।
टापों की ठोकरें खा कर
गोद काल की सो जाते।।
किया पार नाला था चौड़ा
चेतक नहीं जरा घबराया।
स्वामी भक्ति दिखाई उसने
फिर काल को गले लगाया।
सो गया हमेशा को वह चेतक
वीरता का जो परिचायक था।
हल्दी घाटी के रण का केवल
एक वही तो नायक था।
– विनय मोहन शर्मा,
सेवा निवृत्त सहायक प्रशासनिक अधिकारी
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