माँ बाप कुछ यूँ
माँ बाप कुछ यूँ ….
पेड़ों के छाव के जैसे
खेतों में धूप के जैसे
प्यासों को पानी के जैसे
जिंदगी में सांसों के जैसे
माँ बाप कुछ यूँ ….
पेड़ों के छाव के जैसे
शिमला के बर्फो के जैसे
जिंदगी की शिद्दत के जैसे
जिंदगी की कशमकश में
माँ बाप की छाव का साथ
माँ बाप का अहसास
जरूरत है कुछ यूँ
पेड़ों के छाव के जैसे
माँ बाप कुछ यूँ …..
गिरिजाघर और शिवाल के जैसे
हिमगिरि की ऊँचाईयों के जैसे
सागर के गहराइयों के जैसे
माँ बाप कुछ यूँ …
पेड़ों के छाव के जैसे
बच्चों के गर्व और अभिमानो के जैसे
बच्चों के सपनों के खजानों के जैसे
बच्चों के खिलौनों के जैसे
जरूरत है कुछ यूँ
जिंदगी की तरह
माँ बाप कुछ यूँ …..
पेड़ों के छाव के जैसे
– प्रियंका तिवारी
बैरकपुर ,पश्चिम बंगाल