श्रमिक का पलायन

श्रमिक का पलायन

ये जो बीच सड़क में पड़ा है।
रक्त रंजित,धूल धूसरित।
कौन है?
वस्त्र सारे फटे चीथड़े।
खंड विखंडित मांस लोथड़े।
चील, कौओं, गिद्धों का शोर।
आसमान में चारों ओर।
श्रमिक का पलायन
श्रमिक का पलायन
भीड़ में जिज्ञासा है, कौतूहल है।
क्षोभ है, कोलाहल है।
आसन्न मृत्यु की भेंट चढ़ा जो।
ये अस्थि पंजर किसका है?
तभी पास खड़ा आगंतुक बोला।
अरे यह तो शव  है उस प्रवासी श्रमिक का।
जो कुछ ही दूर पर सड़क निर्माण में रत था।
निरंतर श्रम साधना से पस्त था।
जब परिश्रम से थक जाता।
तो पास के नीम तले सुस्ताता।
अभी सुबह ही निकला था हताश होकर।
अपनी दुरावस्था से निराश होकर।
मार्ग दुर्गम,राह‌ कठिन थी।
फिर भी न घर वापसी की चाह मलिन थी।
अपने साहस और निष्ठा पर तो भरोसा था।
पर मालिक की अवहेलना ने मन मसो्सा था।
बस कुछ ही देर चला था।
पर दुर्भाग्य अभी न टला था।
सिर पर गठरी, पैरों में छाले।
स्वाभिमान की पोटली,रिक्त उदर में संभाले।
पांव के नीचे तपती धरती।
आसमान से आग बरसती।
एक बार गश खा कर गिरा।
तो फिर ना जागा।
तीव्र गति से आते ट्रक से
कुचला गया हतभागा।
अफवाहों का बाज़ार गरम है।
साथी श्रमिकों की आंखें नम है।
जनता तमाशबीन बनी देख रही।
नगर पालिका अपनी रोटियां सेंक रही।
प्रेस की गाड़ियों का जमघट लगा है।
हर कोई अपने जुगाड़ में लगा है।
एक वीरानी और मायूसी सी है छाई।
तभी उन्मत्त भीड़ से किसी के चीखने की आवाज़ आई।
अरे कोई इसके घरवालों को तो खबर कर दो।।।

– कामना दत्ता

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