हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना
हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय भावना हिंदी साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना अनंत काल से रही है। राष्ट्रीय विचार धारा अविरल गति से हिंदी में बहती आई है। इसने राष्ट्रीय चेतना के प्रचार प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया है।
आदिकाल के चारण कवियों में चाहे वे किसी राजाश्रय में रहते थे ,लेकिन जन जीवन में राष्ट्रीय एवं जातीय भावनाओं से ओतप्रोत नव भावों का संचार करना ही उनकी सर्जना का मूल लक्ष्य एवं उद्देश्य हुआ करता था। भक्तिकाल में साहित्य का मूल उद्देश्य जीवात्मा और परमात्मा तथा भक्त और भगवान् के संबंधों को उजागर करना था लेकिन उसमें भी राष्ट्रीयता का स्वर गूंजता सुनाई पड़ता था। मानस के उत्तरकाण्ड में राम राज्य की परिकल्पना हमारी राष्ट्रीय कल्पना का सर्वथा अनुरूप तो है ही उसमें कलिकाल और उसके प्रभाव को जो दृश्य उपस्थित किया गया है ,उसका लक्ष्य युगीन परिस्थितियों का सजीव चित्र प्रस्तुत कर राष्ट्र को भावी जीवन के लिए सचेत एवं सावधान करना ही है।
राष्ट्रीय चेतना का सन्देश
आधुनिक काल का जन्म भी राष्ट्रीय चेतना के पावन आलोक में हुआ है। भारतेंदु हरिश्चंद जी कहते हैं –
भारतीयों को एकता का मार्ग ग्रहण करने के लिए संकेत करते हुए भारतेंदु जी कहते हैं –
वियोगी हरी ,मैथिलीशरण गुप्त ,माखनलाल चतुर्वेदी ,सुभद्राकुमारी चौहान ,जयशंकर प्रसाद ,श्याम नारायण पाण्डेय ,रामधारी सिंह दिनकर ,शिवमंगल सिंह सुमन आदि कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार किया। देश को एक नयी चेतना प्रदान की। माखनलाल चतुर्वेदी ने फूल की चाह के माध्यम से अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देते हुए लिखा है –
देश पर मर मिटने का संदेह देते हुए राम नरेश त्रिपाठी जी की भावनाएं उनको निम्नलिखित पंक्तियों में दिखाई पड़ती है –
आधुनिक काल में राष्ट्रीय भावना
आधुनिक काल के अधिकाँश कवियों ने राष्ट्रीय भावना से प्रभावित होकर राष्ट्रप्रेम सम्बन्धी रचनाएं लिखी है। इसमें अतीत भारत की गौरवमयी झांकी है। राष्ट्र नायकों की वीरता और त्याग का चित्र है। प्रसाद के नाटकों ,उनकी कहानियां और गीतों में राष्ट्रीयता की अविरल धारा तरंगित होती है। अरुण यह मधुमय देश हमारा में भारत के गौरव का चित्र हैं। सुभद्राकुमारी चौहान ने वीरांगना झांसी की रानी को अपने काव्य का विषय बनाकर नारियों में भी एक नयी उमंग और नया जोश भर दिया। उनकी कविता वीरों का कैसा हो वसंत ? राष्ट्रीय भाषा की एक अमर रचना है। कविवर श्याम नारायण पाण्डेय ने महान राष्ट्रप्रेमी महाराजा के चरित्र के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना फ़ैलाने का कार्य किया उदाहरण देखिये –
इस प्रकार जब हम हिंदी साहित्य के आदिकाल से आजतक के साहित्य का अवलोकन करते हैं तब इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि राष्ट्रीयता की भावना एक पावन सरिता की तरह प्रवाहित होती रहती है। परिस्थितियों के कारण इसमें कभी कभी अवरोध अवश्य उपस्थित होता रहता है ,लेकिन इसकी धारा निरंतर गतिशील रही है।