विटामिन एक प्रकार के कार्बनिक यौगिक हैं। जीव शरीर में अल्प मात्रा में कई प्रकार के विटामिनों की आवश्यकता होती है। ये जन्तु शरीर में उपापचयी क्रियाओं के नियंत्रण एवं नियमन के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं।
यद्यपि ये ऊर्जा प्रदान नहीं करते अर्थात इनसे कोई कैलोरी प्राप्त नहीं होती, लेकिन अन्य ऊर्जादायी पदार्थों का संश्लेषण एवं रासायनिक प्रतिक्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं। अतः इनकी कमी से मेटाबोलिज्म त्रुटिपूर्ण होकर शरीर को रोगी बना देता है।
इसलिए इन्हें “सहायक आहार कारक” और “वृद्धि तत्व” भी कहा जाता है। विटामिन का अर्थ होता है-“जीवन सत्व या जीवन के लिए आवश्यक”
विटामिन की खोज
विटामिन की खोज का श्रेय “फंक तथा हॉपकिंस” को दिया जाता है। 1912 ई. में पोलैंड के वैज्ञानिक “कैसिमिर फंक” ने पहली चावल की छीलन से बेरी-बेरी रोग को रोकने वाले पदार्थ को पृथक किया तथा उसके लिए “Vitamin” शब्द का प्रयोग किया। विटामिन को “सहायक आहार कारक” की संज्ञा वैज्ञानिक फ्रेडरिक गोलैंड हॉपकिंस ने दी।
विटामिन्स की आवश्यकता एवं कार्य
जन्तु शरीर तथा पादप दोनों को विटामिन की आवश्यकता होती है। पादप विटामिनों का संश्लेषण स्वयं कर लेते हैं। किन्तु जन्तु शरीर अधिकांश विटामिनों को संश्लेषित नहीं कर सकता। अतः वह इन्हें भोजन द्वारा ही ग्रहण करता है।
शरीर में इनका संचय बहुत कम मात्रा में होता है। इनकी अधिकांश मात्रा का मूत्र के साथ उत्सर्जन होता रहता है। इसलिए इन्हें प्रतिदिन भोजन से ग्रहण करना आवश्यक होता है।
शरीर के अन्दर विटामिन या तो स्वयं सहएंजाइमों का कार्य करते हैं, या सहएंजाइमों के संयोजन में भाग लेते हैं। इस प्रकार ये स्वयं एंजाइम या एंजाइम का अंश बन कर उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
विटामिन्स के प्रकार
जीवों में अभी तक 20 प्रकार के विटामिन्स का पता चला है। जिनमें से 13 को भोजन के रूप में ग्रहण करना अनिवार्य होता है। इन्हें मुख्य रूप दो श्रेणियों में बांटा गया है।
वसा में घुलनशील विटामिन-K, E, D, A
Trick-वसा का कीड़ा (KEDA)
जल में घुलनशील विटामिन-B, C
विटामिन के रासायनिक नाम
A रेटिनॉल
B1 थायमीन
B2 या G राइबोफ्लेविन
B3 या PP नियासिन या निकोटिनिक अम्ल
B5 पैंटोथीनिक अम्ल
B6 पाइरीडॉक्सिन
B7 या H बायोटिन
B9 फोलिक अम्ल
B12 सायनोकोबालैमीन
C एस्कॉर्बिक अम्ल
D कैल्सीफेरॉल
E टोकोफेरॉल
K नैफ्थोक्विनोन
विटामिन्स और अल्पता से रोग
A-रतौंधी, जीरोफ्थैलमिया, कुंठित बुद्धि, संक्रमणों का खतरा, त्वचा कोशिकाओं में परिवर्तन
B1-बेरी-बेरी, वृद्धि रुकना
B2 या G-कीलोसिस (त्वचा एवं ओंठ का फटना), आँखों का लाल होना।
B3 या PP-पेलाग्रा या 4-D-सिंड्रोम
B5-चर्म रोग, बाल सफेद, वृद्धि कम, मन्द बुद्धि
B6-रक्तक्षीणता (एनीमिया), चर्म रोग, पेशीय ऐंठन
B7 या H-लकवा, बालों का गिरना, शरीर में दर्द, चर्म रोग
B9-रक्तक्षीणता, कुंठित बुद्धि, पेचिश रोग
B12-घातक रक्तक्षीणता, पांडुरोग
C-स्कर्वी रोग
D-रिकेड्स (बच्चों में), ऑस्टियोमैलेसिया (वयस्कों में)
E-जनन क्षमता की कमी, जननांग तथा पेशियाँ कमजोर
K-रक्त का थक्का न बनना