उठो चलो कि लहरे अभी बाकी हैं

उठो चलो कि लहरे अभी बाकी हैं 

उठो चलो कि लहरे अभी बाकी है,
आवाज से गहराई नापने को मन अभी साकी है।

उठो चलो

जी लो आज की कल किसने देखा है,
मन में यादों की परत जमा लो कि
एकांत में अकेलापन से झूझते बहुतों को देखा है।।

चलो अपनी राह जहाँ हो मन की चाह,
कि लोगों की बाते सुन बहुतों को हारते देखा है।।
हंसो की धूल जाए हर गम सिकवा या शिकायत,
की लोगों को बस कमियों को ही गिनते देखा है।

बातों और साथ में खुशी समेटो,
की पैसों के दिखावे में रिश्तों को रिश्ते देखा है।।
उठो चलो कि लहरे अभी बाकी हैं,
आवाज में गहराई नापने को मन अभी साकी है।।



– प्रेरणा सिंह 

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