श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

                         
बौड़मदास मेरा मित्र था
वह रोशनी का रखवाला
लड़ाई लड़ रहा था
सुशांत सुप्रिय
सुशांत सुप्रिय
अँधेरे के खलनायकों के विरुद्ध
उसे तो ख़त्म होना ही था एक दिन
उसके साथ केवल मुट्ठी भर लोग थे
जबकि अँधेरे की पूरी फ़ौज थी
उसके विरुद्ध
पर नाकों चने चबवा कर गया
वह प्रकाश-पुंज
अँधेरे के एजेंटों को
सवेरा लाने के लिए लड़ा था वह
एक नाज़ुक दौर में
घुप्प अँधेरे के दानवों से …
काश , हर आदमी बौड़म दास हो जाए
सब के हृदय में सुबह की आस हो जाए
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                           2. अगली बार
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                                                  — सुशांत सुप्रिय
यदि आया तो
अगली बार बेहतर बन कर
आना चाहूँगा यहाँ
झूठ और अवसरवादिता के
अक्ष पर टिका हुआ नहीं
बल्कि मनुष्यता की धुरी पर
घूमता हुआ आना चाहूँगा
अपनों को और समय दूँगा
सपनों को और समय दूँगा
यदि आया तो
अगली बार दुम हिलाने
नहीं आना चाहूँगा
छल-कपट करके खाने
नहीं आना चाहूँगा
सही बात कहूँगा
तुच्छताओं की ग़ुलामी
नहीं सहूँगा
यदि आया तो
अगली बार सूर्य-किरण-सा
आना चाहूँगा
श्रम करते जन-सा
आना चाहूँगा
यदि आया तो
अगली बार
आँकड़ा बन कर नहीं
आदमी बन कर
आना चाहूँगा यहाँ
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                          3. आदमकद सोच
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                                                       — सुशांत सुप्रिय
कितना भी उगूँ
जुड़ा रहूँ अपनी जड़ों से
जैसे गर्भ-नाल से
जुड़ा रहता है
गर्भ में पलता शिशु
कितना भी बढ़ूँ
बँधा रहूँ अपने उद्गम-स्थल से
जैसे बँधे रहते हैं प्रेमी-प्रेमिका
फ़ौलाद और चाशनी की
डोरी से
कितना भी सोऊँ
जगा रहूँ अपने कर्तव्यों के प्रति
जैसे जगी-सी रहती है
अबोध शिशु की माँ नींद में भी
बगल में पड़े शिशु के कुनमुनाने से
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प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
           A-5001 ,
           गौड़ ग्रीन सिटी ,
           वैभव खंड ,
           इंदिरापुरम् ,
           ग़ाज़ियाबाद – 201014
           ( उ. प्र. )
मो :  8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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